जन्म-कुंडली में राजयोग

Raj yog in janam kundali

जन्म-कुंडली में राजयोग 

(लेखक - श्री विद्या सागर महथा)

फलित ज्योतिष में ग्रह या ग्रहों की विशेष स्थितियों का विवरण राजयोग या ज्योतिषयोग प्रकरण में मिलता है। राजयोग ज्योतिष में प्रयुक्त होनेवाला वह शब्द है , जिसका अर्थ सामान्यतया राजा होने या राजा की तरह सुख , संसाधन या प्रतिष्ठा प्राप्त करने की भविष्यवाणी की पुिष्ट करता है। राजयोगों की विवेचना या उल्लेख करते हुए सामान्यतया ज्योतिषी या ज्योतिषप्रेमी अपने मस्तिष्क मे भावी उपलब्धियों की बहुत बड़ी तस्वीर खींच लेने की भूल करते हैं। चूंकि आज का युग राजतंत्र का नहीं है , कई लोग इसकी व्याख्या करते हुए कहते हैं कि राजयोग का जातक मंत्री , राज्यपाल , राष्ट्रपति , कमांडर , जनप्रतिनिधि या टाटा ,बिड़ला जैसी कम्पनियों का मालिक होना है। लेकिन जब इस प्रकार के योगों की प्राप्ति बहुत अधिक दिखलाई पड़ने लगी , यानि राजयोगवाली बहुत सारी कुंडलियॉ देखने को मिलने लगीं , तो ज्योतिषी फलित कहते वक्त कुछ समझौता करने लगे और राजयोग का अर्थ गजेटेड अफसरो से जोड़ने लगें। 

1965 के आसपास अधिकांश ज्योतिषियों के दृिष्टकोण लगभग ऐसे ही थे। जब भी किसी कुंडली में कोई राजयोग दिखाई पड़ता , मै भी शीघ्र इस निर्णय पर पहुंच जाता कि संबंधित जातक को असाधारण व्यक्तित्व का मालिक होना चाहिए। कालांतर में यानि 1970 तक जब बहुत सी कुंडलियो को गौर से देखने का मौका मिला , तो राजयोग से संबंधित मेरी धारणाएं धीरे-धीरे बदलने लगी। गाणितिक दृिष्ट से राजयोग की संभावनाओं पर मेरा ध्यान केिन्द्रत हुआ। इस अनुक्रम में मेरा पहला लेख 1971 में शक्तिनगर दिल्ली से प्रकािशत होनेवाली ज्योतिषीय पति्रका ` भारतीय ज्योतिष´ में प्रकािशत हुआ , जिसका शीषZक था - ` चामर योग की संभावनाएं और इसका मूल्यांकण ´ । इस लेख को लिखते हुए मैनें ग्रह योग की संभावनाओं को गणित में वणिZत संभावनावाद की कसौटी पर रखने की कोिशश की। दूसरा लेख जयपुर से निकलनेवाली ज्योतिष पति्रका ` ज्योतिष मार्तण्ड ´ में नवंबर 1974 में प्रकािशत हुआ , जिसका शीषZक था--` विपर्यय योग और इंदिरा गॉधी ´ । 

श्रीमती इंदिरा गॉधी की कुंडली में कोई भी ग्रह स्वक्षेत्रीय या उच्च का नहीं था , किन्तु सूर्य-मंगल , बृहस्पति-शु्रक्र तथा शनि-चंद्र का परस्पर विपर्यय था । इस लेख में भी योगों की संभावनाओ की गाणितिक व्याख्या थी। प्रकाशन के समय ये लेख काफी चर्चित थें। इस तरह ज्योतिष की प्राचीन पुस्तकों में वणिZत अधिकांश राजयोगों की गाणितिक व्याख्या के बाद मैं इस निष्कषZ पर पहुंचा कि इस प्रकार के योग बहुत सारे कुंडलियों में भरे पड़े हैं , जिनका कोई विशेष अर्थ नहीं है। अब तो मैं दृढतापूर्वक इस बात को कह सकता हूं कि राजयोगों की तालिका में ऐसे बहुत सारे राजयोग हैं , जो किसी कुंडली में 5-7 की संख्या में होने के बावजूद भी जातक को वििशष्ट नहीं बना पाते हैं।


यदि आपको ज्योतिष में रुचि है , तो कई बार आप पढ़ ही चुके होंगे कि किसी कुंडली में तीन ग्रह उच्च के हों तो जातक नृपतुल्य होता है। जब प्रारंभ में इस योग की जानकारी हुई थी , तो अपनी कुंडली में उच्चस्थ ग्रहों को गिनने की कोिशश की , जैसा हर कोई करते ही होंगे , ऐसा मेरा मानना है। मेरी कुंडली में उच्चस्थ ग्रह सिर्फ मंगल था। श्रीमती इंदिरा गॉधी की कुंडली में ढंूढ़ने की कोिशश की तो एक भी नहीं मिला , पुन: यह सोंचते हुए कि यह सचमुच उच्च कोटि का राजयोग है , इंदिरा गॉधी से भी अधिक प्रभुतासंपन्न कुंडली में मिल सकता है , उनके पिता श्री जवाहरलालजी की कुंडली को देखा । वहॉ भी तीन उच्चस्थ ग्रहों को नहीं पाया। किन्तु एक दिन ऐसा भी आया , जब मैं तीन उच्चस्थ ग्रहों की तलाश में नहीं था , फिर भी एक दुकानदार की कुंडली में सहसा तीन उच्चस्थ ग्रह दिखाई पड़े। उस दुकानदार की मासिक आय परिवार के भरण-पोषण के बाद दो सौ से अधिक की नहीं थी।

Raj yog in janam kundali

उक्त कुंडलीवाले सज्जन के जीवन का पूर्वार्द्ध बहुत ही संघषZमय था। ये अपने जीवन के अंतिम क्षणों को सुख्सपूर्वक तो व्यतीत कर रहे थे , पर अधिक सुधार की गुंजाइश नहीं थी। इस कुंडली को देखने के बाद मैं सोचने लगा--इस कुंडली में सूर्य , बृहस्पति और शनि उच्च के हेैं। इस जातक के जन्म के समय के आसपास जब तक मेष रािश में सूर्य रहा होगा , तीन उच्चस्थ ग्रहों का योग एक महीने के लिए कायम होगा और इस एक महीने के अंदर जितने भी बच्चों ने जन्म लिया होगा , सभी की कुंडली में तीन ग्रह उच्चस्थ ही रहे होंगे। किन्तु वे सभी जातक नृपयोग मे जन्म लेकर भी वास्तव में राजा नहीं हुए होंगे। इनमें से एक व्यक्ति मामूली दुकानदार के रुप में मुझे मिल गया , शेष के बारे में भगवान ही जाने , कहॉ , कौन किस स्थिति में है। 
उपरोक्त व्याख्या से इतनी बात तो स्पष्ट हो गयी कि अभी तक राजयोगों का सही मूल्यांकण नहीं हुआ है और न ही आधुनिक ज्योतिषी इस दिशा में कोई ठोस कदम ही उठा पाए हैं। जिस राजयोग में एक राजा को पैदा होना चाहिए , उसमें एक मामूली दुकानदार पैदा हो जाता है और जब श्रीमती इंदिरा गॉधी जैसे सर्वगुणसंपन्न प्रधानमंत्री की कुंडली की व्याख्या करने का अवसर मिलता है , तो बड़े से बड़े ज्योतिषी उनकी कुंडली में बुधादित्य राजयोग ही उनके प्रघानमंत्री बनने का कारण बताते हैं , जबकि संभावनावाद के अनुसार 50 प्रतिशत से अधिक लोगों की कुंडली में बुधादित्य योग के होने की संभावना होती है। एक महान ज्योतिषी ने अपनी पुस्तक में लिखा है , बुधादित्य योग यद्यपि प्राय: सभी कुंडलियों में पाया जाता है , फिर भी इसे कम महत्वपूर्ण नहीं समझना चाहिए। इस तरह राजयोगों का विश्लेषण क्या असमंजस में डालनेवाला पेचीदा , अस्पष्ट और भ्रामक नहीं है ? इस तरह के पेचीदे वाक्य राजयोग के विषय में ही नहीं , वरन् ज्योतिष के समस्त नियमों के प्रति बुिद्धजीवी वर्ग की जो धारणा बनती है , उससे फलित ज्योतिष का भविष्य उज्जवल नहीं दिखाई पड़ता है।


आज कम्प्यूटर का जमाना है , अपने समस्त ज्योतिषीय नियमों , सिद्धांतो को कम्प्यूटर में डालकर देखा जाए , कुंडली निर्माण से संबंधित गणित भाग का काम संतोषजनक है , परंतु फलित भाग बिल्कुल ही स्थूल पड़ जाता है , इससे किसी को संतुिष्ट नहीं मिल पाती है। एक मामूली प्राथ्मिक स्कूल के िशक्षक और बसचालक की कुंडली में अनेक राजयोग निकल आते हैं और अमेरिका के राष्ट्रपति बिल िक्लंटन की कुंडली में एक दरिद्र योग का उल्लेख इस तरह होता है , मानो वह अति वििशष्ट व्यक्ति न होकर भिखारी हो। वास्तव में फलित ज्योतिष से संबंधित नियम बहुत ही उलझनपूर्ण और अस्पष्ट हैं। यदि कोई यह कहे कि एक रुपये में सौ आम खरीदकर तो लाया गया है , परंतु इसे कम महत्वपूर्ण नहीं समझा जाए , एक आम का दाम दस रुपये है , तो इस प्रकार के दुविधापूर्ण तथ्यो को कम्प्यूटर में डालने के बाद आम की कीमत के बारे में पूछा जाए , तो कम्प्यूटर भी सदैव दुविधापूर्ण उत्तर ही देगा। अभी बाजार में राजयोगों से संबंधित कई पुस्तकें उपलब्ध है , किन्तु आजतक के विद्वानों के विश्लेषण की पद्धति मौलिक या वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित नहीं है।

ईस प्रकार की दुविधापूर्ण पुस्तकों के बाजार में भरे होने के कई कारण हो सकते हैं। वैज्ञानिक दृिष्टकोणों का अभाव हो या व्यावसायिक सफलता में अधिक रुचि होने के कारण परंपरागत भूलों को नजरअंदाज किया जा रहा हो। कारण जो भी हो , लेकिन सभी पुस्तको ंमें परंपरागत राजयोगों को महत्वपूर्ण समझा गया है और उसका मात्र हिन्दी अनुवाद कर दिया गया है। इन राजयोगों की पुिष्ट में सिर्फ एक महापुरुषों की जन्मकुंडली को उद्धृत कर दिया गया है। ऐसा ही होता आया है , सोंचकर पाठक के दिमाग में राजयोगों की गलत धारणाएं आ जाती हैं । जब भी वे किसी कुंडली में राजयोग को पा लेते हैं , फलित की चर्चा करते तनिक भी नहीं हिचकिचाते कि अमुक जातक मंत्री या पदाधिकारी होगा , जबकि तथ्य अनुमान के विपरीत असमंजस में डालनेवाले होते हैं। मैंने राजयोगों के सभी नियमों का भली-भॉति अध्ययन किया है और सर्वदा इसी निष्कषZ पर आया हूं कि इनका न तो सही क्रम है और न ही नििश्चत मूल्य। इन योगों की सहायता से योगों की तीव्रता की अभिव्यक्ति नहीं की जा सकती है। राजयोग में पैदा होनेवाले व्यक्तियों को वर्गीकृत नहीं किया जा सकता। राजयोग के शािब्दक अर्थ या निहित अर्थ को कायम नहीं रखा जा सकता , वरन् राजयोगों को समझने के क्रम में उलझनें ही सामने आएंगी। इन योगों को सटीक बनाने के क्रम में ज्योतिषी गणित के संभावनावाद और ग्रहगति में सबसे महत्वपूर्ण मंदगति मंद गति की उपस्थिति को राजयोगों में सिम्मलित कर संभावनाओं को विरल बनाने की कोिशश करें , नही ंतो इन योगों का कोई अभिप्राय नहीं रह जाएगा। 

कई राजयोगों की विफलता को प्रस्तुत करती कुंडली हमनें देखा है, जो एक ऐसे व्यक्ति की है , जो अपने माता-पिता और अपने पूरे परिवार को परेशान करता हुआ अपनी सारी संपत्ति खो बैठा है। इश्कमिजाज , फिजूलखर्च और शराबी है , चाकू रखता है , दूसरों को परेशान करना , धमकी देना और ब्लैकमेलिंग करना इसका काम है। पुलिस की निगाह सदैव इसपर बनी रहती है। इस प्रकार प्रशासन की दृिष्ट में भी यह एक संदिग्ध व्यक्ति है। टी बी का मरीज है , इसकी कुंडली में चामर योग , नीचभंग महायोग , रुचक योग बुधादित्य योग -- सभी विद्यमान है। लगनेश मंगल दशम भाव में दिक्बली है। किन्तु राजयोग से संबंधित किसी भी फल का जीवन में घोर अभाव है।

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