kya kundli sach hoti hai
(लेखक - श्री विद्या सागर महथा)
विश्व की कुल आबादी इस समय 7 अरब के आसपास है और उस आबादी का लगभग छठा भाग 1 करोड़ से अधिक केवल भारत में है। परिवार नियोजन के कार्यक्रमों में बढ़ोत्तरी के बावजूद प्रत्येक दस वर्षों में इस समय आबादी 25 प्रतिशत बढ़ती चली आ रही है। अत: यह कहा जा सकता है कि बच्चों का जन्मदर अपने उफान पर है। इस समय प्रत्येक मिनट में भारत में जन्म लेनेवाले बच्चों की संख्या 4 होती है। फिर भी यदि आप किसी बड़े अस्पताल में कुछ दिनों के लिए ठहरकर निरीक्षण करें , तो आप पाएंगे कि शायद ही कोई दो बच्चे किसी विशेश समय में एक साथ उत्पन्न होते हैं। अत: हर बच्चे की मंजिल निश्चित तौर पर भिन्न होगी , चाहे लगन की कुंडली एक जैसी ही क्यों न हो , सारे ग्रहों की स्थिति एक जैसी ही क्यों न हो।
कभी-कभी एक ही गर्भ से दो बच्चों का भी जन्म होता है , तथापि जन्मसमय बिल्कुल एक नहीं होता , यही कारण है कि दो जुड़वॉ भाइयों के बीच बहुत सारी समानताओं के बावजूद कुछ विषमताएं भी होती हैं , किन्तु विषमताएं कभी-कभी इतनी मामूली होती हैं कि दोनों के बीच उसे अलग कर पाना काफी कठिन कार्य होता है। हो सकता है , इन मामूली विषमताओं के कारण ही दोनो की मंजिल भिन्न-भिन्न हो , दोनों अलग-अलग व्यवसाय में हों। बहुत बार देखने को ऐसा भी मिलता है कि दो जुड़वॉ भाइयों में से एक जन्म लेने के साथ ही या कुछ दिनों बाद मर गया और दूसरा आजतक जीवित ही है। जो जीवित है , उसकी चारित्रिक विशेषताएं , सोंच-विचार की शैली , उम्र के सापेक्ष ग्रहों की स्थिति और शक्ति के अनुसार ही है , किन्तु जो संसार से चला गया , उसके सभी ग्रहों का फल उस जातक को क्यों नहीं प्राप्त हो सका ? यह बहुत ही गंभीर प्रश्न है। इस कारण लोगों के मन में प्रश्न आते हैं की क्या कुण्डली सच होती है ?
मैने आयुर्दाय से संबंधित संपूर्ण प्रकरण का अध्ययन किया , उसके नियम-नियमावलि को भी ध्यान से समझने की चेष्टा की , किन्तु मुझे कोई सफलता नहीं मिली। गत्यात्मक दशापद्धति से ही एक तथ्य का उद्घाटन करने में अवश्य सफल हुआ कि जब किसी ग्रह का दशाकाल चल रहा होता है , उससे अष्टम भाव में लग्नेश विद्यमान हो , तो कुछ लोगो को मृत्यु या मृत्युतुल्य कष्ट अवश्य प्राप्त होता है। संजय गॉधी जब 34 वर्ष के थे और मंगल के काल से गुजर रहे थे , जब उनकी मृत्यु हुई। उनकी जन्मकुंडली में धनु राशि के मंगल से अष्टम में लगनेश शनि कर्क राशि में स्थित था। इनकी मृत्यु के समय शनि और मंगल दोनो ही ग्रह लग्न से अष्टम भाव में गोचर में लगभग एक तरह की गति में मंदगामी थे। इसी तरह एन टी रामाराव शनि के मध्यकाल से गुजर रहे थे , वे 78 वर्ष की उम्र के थे । इनका जन्मकालीन शनि कन्या राशि द्वादश भाव में स्थित था तथा लग्नेश शुक्र शनि के अष्टम भाव में मेष राशि में मौजूद था।
इसी प्रकार अन्य कई लोगों को भी इस प्रकार की स्थिति में मृत्यु को प्राप्त करते देखा , अत: इसे मौत के परिकल्पित बहुत से कालों में से एक संभावित काल भले ही मान लिया जाए , पूरे आत्मविश्वास के साथ हम मौत का ही काल नहीं कह सकते। इससे भी अधिक सत्य यह है कि मौत कब आएगी , इसकी जानकारी जन्मकुंडली से अभी तक किए गए शोधों के आधार पर मालूम कर पाना असंभव ही है। चाहे जन्मसमय की शुद्धतम जानकारी किसी ज्योतिषी को क्यो न दे दी जाए , मौत के समय की जानकारी दे पाना किसी भी ज्योतिषी के लिए कठिन होगा ,क्योकि इससे संबंधित कोई सूत्र उनके पास नहीं है। अत: जुड़वे में से एक की मौत क्यो हुई और जीवित के साथ ग्रह किस प्रकार काम कर रहे हैं ? इन दोनों की तुलना का कोई प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता। एक ज्योतिषीय पत्रिका में ऑस्टेलियाई जुड़वो की ऐसी भी कहानी पढ़ने को मिली , जो 65-66 वर्ष की लम्बी उम्र तक जीने के बाद एक ही दिन बीमार पड़े और एक ही दिन कुछ मिनटों के अंतर से मर गए। दोनों की जीवनशैली , चारित्रिक विशेषताएं , कार्यक्रम सभी एक ही तरह के थे। इतनी समानता न भी हो , फिर भी एक दिन और एक ही लग्न के जातको में कुछ समानताएं तो निश्चित तौर पर होती हैं।
यहॉ एक प्रश्न और भी उठ जाता है कि जिस दिन जिस लग्न में महात्मा गॉधी , जवाहरलाल नेहरु , सुभाशचंद्र बोस , हिटलर , नेपोलियन आदि पैदा हुए थे , उस दिन उस लग्न में क्या कोई और पैदा नहीं हुआ ? यदि पैदा हुआ तो उन्हीं चर्चित लोगों की तरह वह भी चर्चित या यशस्वी क्यों नहीं है ? इस प्रश्न का उत्तर सहज नहीं दिया जा सकता। यदि उत्तर ऋणात्मक हो यानि महात्मा गॉधी जैसे लोगों के जन्म के दिन उसी लग्न की उसी डिग्री में विश्व के किसी भाग में किसी व्यक्ति का जन्म नहीं हुआ , तो उत्तर को विशुद्ध परिकल्पित माना जा सकता है , किन्तु मै इतना तो अवश्य कहना चाहूंगा कि प्रकृति में अति महत्वपूर्ण घटनाएं काफी विरल होती हैं , जबकि सामान्य घटनाओं में निरंतरता बनी होती हैं। शेरनी अपने जीवन मे एक बच्चे को पैदा करती है , उसका बच्चा शेर होता है , जिनकी विशेशताओं और खूबियों को अन्य जीवों में नहीं देखा जा सकता है। अत: शेर के बच्चे के जन्म के समय में जरुर कुछ विशेषताएं रहती होंगी , वह क्षण विरले ही उपस्थित होता होगा। उस क्षण में सियारनी अपने बच्चे को जन्म नहीं दे सकती , क्योंकि सियार के बच्चे एक साथ दर्जनों की संख्या में जन्म लेते हैं और इसलिए इनके बच्चों की विशेषताओं को असाधारण नहीं कहा जा सकता। इनका जन्म सामान्य समय में ही होगा।
इसी तरह महापुरुषों के आविर्भाव के काल में ग्रहो की विशेश स्थिति के कारण जन्म-दर में विरलता रहती होगी। महापुरुषों के जन्म के समय किसी सामान्य पुरुष का जन्म नहीं हो सकता है। एक साथ दो भगवान के अवतार की गवाही इतिहास भी नहीं देता। मेरी इन बातों को यदि आप कोरी कल्पना भी कहें , तो दूसरी बात जो बिल्कुल ही निश्चित है , एक लग्न और एक लग्न की डिग्री में महत्वपूर्ण व्यक्ति का जन्म एक स्थान में कभी नहीं होता। यदि किसी दूरस्थ देश में किसी दूसरे व्यक्ति का जन्म इस समय हो भी , तो आक्षांस और देशांतर में परिवर्तन होने से उसके लग्न और लग्न की डिग्री में परिवर्तन आ जाएगा। फिर भी जब जन्म दर बहुत अधिक हो , तो या बहुत सारे बच्चे भिन्न-भिन्न जगहों पर एक ही दिन एक ही लग्न में या एक ही लग्न डिग्री में जन्म लें , तो क्या सभी के कार्यकलाप , चारित्रिक विशेशताएं , व्यवसाय , शिक्षा-दीक्षा , सुख-दुख एक जैसे ही होंगे ?
मेरी समझ से उनके कार्यकलाप , उनकी बौद्धिक तीक्ष्णता , सुख-दुख की अनुभूति , लगभग एक जैसी ही होगी। किन्तु इन जातकों की शिक्षा-दीक्षा , व्यवसाय आदि संदर्भ भौगोलिक और सामाजिक परिवेश के अनुसार भिन्न भी हो सकते हैं। यहॉ लोगों को इस बात का संशय हो सकता है कि ग्रहों की चर्चा के साथ अकस्मात् भौगोलिक सामाजिक परिवेश की चर्चा क्यो की जा रही है ? स्मरण रहे , पृथ्वी भी एक ग्रह है और इसके प्रभाव को भी इंकार नहीं किया जा सकता। आकाश के सभी ग्रहों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है , परंतु भिन्न-भिन्न युगों सत्युग , त्रेतायुग , द्वापर और कलियुग में मनुष्यों के भिनन-भिन्न स्वभाव की चर्चा है। मनुष्य ग्रह से संचालित है , तो मनुष्य के सामूहिक स्वभाव परिवर्तन को भी ग्रहों से ही संचालित समझा जा सकता है , जो किसी युग विशेष को ही जन्म देता है।
लेकिन सोंचने वाली बात तो यह है कि जब ग्रहों की गति , स्थिति , परिभ्रमण पथ , स्वरुप और स्वभाव आकाश में ज्यो का त्यो बना हुआ है , फिर इन युगों की विशेषताओं को किन ग्रहों से जोड़ा जाए । युग-परिवर्तन निश्चित तौर पर पृथ्वी के परिवेश के परिवर्तन का परिणाम है। पृथ्वी पर जनसंख्या का बोझ बढ़ता जाना , मनुष्य की सुख-सुविधाओं के लिए वैज्ञानिक अनुसंधानों का तॉता लगना , मनुष्य का सुविधावादी और आलसी होते चले जाना , भोगवादी संस्कृति का विकास होना , जंगल-झाड़ का साफ होते जाना , उद्योगों और मशीनों का विकास होते जाना , पर्यावरण का संकट उपस्थित होना , ये सब अन्य ग्रहों की देन नहीं। यह पृथ्वी के तल पर ही घट रही घटनाएं हैं। पृथ्वी का वायुमंडल प्रतिदिन गर्म होता जा रहा है। आकाश में ओजोन की परत कमजोर पड़ रही है , दोनो ध्रुवों के बर्फ अधिक से अधिक पिघलते जा रहे हैं , हो सकता है , पृथ्वी में किसी दिन प्रलय भी आ जाए ,इन सबमें अन्य ग्रहों का कोई प्रभाव नहीं है।
ग्रहों के प्रभाव से मनुष्य की चिंतनधाराएं बदलती रहती हैं , किन्तु पृथ्वी के विभिन्न भागों में रहनेवाले एक ही दिन एक ही लग्न में पैदा होनेवाले दो व्यक्तियों के बीच काफी समानता के बावजूद अपने-अपने देश की सभ्यता , संस्कृति , सामाजिक , राजनीतिक और भौगोलिक परिवेश से प्रभावित होने की भिन्नता भी रहती है। संसाधनों की भिन्नता व्यवसाय की भिन्नता का कारण बनेगी । समुद्र के किनारे रहनेवाले लोग , बड़े शहरों में रहनेवाले लोग , गॉवो में रहनेवाले संपन्न लोग और गरीबी रेखा के नीचे रहनेवाले लोग अपने देशकाल के अनुसार ही व्यवसाय का चुनाव अलग-अलग ढंग से करेंगे। एक ही प्रकार के आई क्यू रखनेवाले दो व्यक्तियों की शिक्षा-दीक्षा भिन्न-भिन्न हो सकती है , किन्तु उनकी चिंतन-शैली एक जैसी ही होगी। इस तरह पृथ्वी के प्रभाव के अंतर्गत आनेवाले भौगोलिक प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
इस कारण एक ही लग्न में एक ही डिग्री में भी जन्म लेनेवाले व्यक्ति का शरीर भौगोलिक परिवेश के अनुसार गोरा या काला हो सकता है। लम्बाई में कमी-अधिकता कुछ भी हो सकती है , किन्तु स्वास्थ्य , शरीर को कमजोर या मजबूत बनानेवाली ग्रंथियॉ , शारीरिक आवश्यकताएं और शरीर से संबंधित मामलों का आत्मविश्वास एक जैसा हो सकता है। सभी के धन और परिवार विशयक चिंतन एक जैसे होंगे , सभी में पुरुषार्थ-क्षमता या शक्ति को संगठित करने की क्षमता एक जैसी होगी। सभी के लिए संपत्ति , स्थायित्व और संस्था से संबंधित एक ही प्रकार के दृष्टिकोण होंगे। सभी अपने बाल-बच्चों से एक जैसी लगाव और सुख प्राप्त कर सकेंगे। सभी की सूझ-बूझ एक जैसी होगी। सभी अपनी समस्याओं को हल करने में समान धैर्य और संघर्ष क्षमता का परिचय देंगे। सभी अपनी जीवनसाथी से एक जैसा ही सुख प्राप्त करेंगे। अपनी-अपनी गृहस्थी के प्रति उनका दृष्टिकोण एक जैसा ही होगा। सभी का जीवन दर्शन एक जैसा ही होगा , जीवन-शैली एक जैसी ही होगी। भाग्य , धर्म , मानवीय पक्ष के मामलों में उदारवादिता या कट्टरवादिता का एक जैसा रुख होगा। सभी के सामाजिक राजनीतिक मामलों की सफलता एक जैसी होगी। सभी का अभीष्ट लाभ एक जैसा होगा। सभी में खर्च करने की प्रवृत्ति एक जैसी ही होगी।
किन्तु शरीर का वजन , रंग या रुप एक जैसा नहीं होगा। संयुक्त परिवार की लंबाई , चौड़ाई एक जैसी नहीं होगी। धन की मात्रा एक जैसी नहीं हो सकती है। संगठन शक्ति , शारीरिक ताकत या भाई-बहनों की संख्या में भी विभिन्नता हो सकती है। संपत्ति भी परिवेश के अनुसार ही भिन्न-भिन्न होगी । संतान की संख्या एक जैसी नहीं हो सकती है। दाम्पत्य जीवन भिन्न-भिन्न प्रकार का हो सकता है। जीवन की लंबाई में भी एकरुपता की बात नहीं होगी , कोई दीर्घजीवी तो कोई मध्यजीवी तथा कोई अल्पायु भी हो सकता है। व्यवसाय की ऊंचाई या स्तर भी अलग-अलग हो सकता है। इसी प्रकार लाभ और खर्च का स्तर भी सामाजिक , राजनीतिक , भौगोलिक , आर्थिक या अन्य संसाधनों पर निर्भर हो सकता है। किन्तु गत्यात्मक दशा पद्धति के अनुसार ही वे सभी जातक एक साथ किसी खास वर्ष में , किसी खास महीनें में , किसी खास दिन में तथा किसी खास घंटे में सुख या दुख की अनुभूति अवश्य करेंगे , उनमें सकारात्मक या नकारात्मक दृष्टिकोण उसी तरह दिखाई पड़ेगा।
किसी व्यक्ति को ईंट बनाते हुए आपने अवश्य देखा होगा। उसके पास उसका अपना सॉचा होता है तथा सनी हुई गीली मिट्टी होती है। प्रत्येक बार वह गीली मिट्टी से सॉचे को भरता है और एक-एक ईंट निकालता है। घंटे भर में वह हजार की संख्या में ईंटे निकाल लेता है। ईंट बनानेवाले की निगाह में सभी ईंटे एक तरह की ही होती हैं , किन्तु जिसे ईंटे खरीदना होता है , वह कुछ ईंटों को कमजोर कह अस्वीकृत कर देता है , जबकि उन ईंटों में जबर्दस्त समानता होती है। इस तरह एक आम के वृक्ष में आम के ढेरो फल एक साथ लगते हैं ,फलों के परिपक्व होने पर सभी फलों की बनावट और स्वाद में बड़ी समानता होती है , कोई भी उन्हें देखकर कह सकता है कि आम एक ही जाति के हैं , परंतु कुछ को आकार प्रकार और स्वाद की दृष्टि से कमजोर बताकर अस्वीकृत कर दिया जाता है। इसी प्रकार मानवनिर्मित हो या प्रकृतिसृजित , हर संसाधन के एक होने और बीज की समानता होने के बावजूद अपवाद के रुप में कुछ विषमताएं कभी आश्चर्यचकित कर देनेवाली होती हैं। इसी प्रकार एक ही दिन एक लग्न में या लग्न के एक ही अंश में जन्म लेनेवाले बहुत सारे लोगों में कुछ विषमताओं के बावजूद उनकी अधिकांश समानताओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
'गत्यात्मक ज्योतिष' टीम से मुलाक़ात करें।
26 टिप्पणियाँ
Click here for टिप्पणियाँबंधु, इतनी-सी बात के लिए इतनी लंबी और कठिन पोस्ट लिखने की क्या जरूरत थी। अब दो व्यक्तियों का भविष्य चाहे एक-सा हो या अलग-अलग इससे क्या फर्क पड़ता है। जरूर यह है कि वे व्यक्ति वैचारिक और इंसानी स्तर पर कैसे हैं। भविष्य की बात भूलकर वर्तमान में देखें।
Replykya likhoon .haan itana jaroor likhungi ki judva bahno ka(5 MINUTE KA ANTAR ) ek kissa mera aankhon dekha hai , ek bahan ne M.B.B.S. kiya doosari ne B.A.M.S., fark karne ke liye shareer me naak par sirf ek nanha sa til tha !
Replyये भी हो सकता है, वो भी हो सकता है, ऐसी भी सम्भावना है, वैसी भी सम्भावना है, निश्चित रूप से कोई भी कुछ नहीं कह सकता, ऐसा कहना मुश्किल है… इन वाक्यों को छोड़कर ज्योतिष को विज्ञान कहा जा सकता है???
Replyसुंदर आलेख लिखा है आपने | ज्यादातर लोगों जो की ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान नहीं रखते वो इन प्रश्नों मैं उलझा रहता है जिसका जवाब आपने देने की इमानदार कोशिश की है आपने |
Replyइस विषय पर और अनुसंधान की जरूरत है । जब विज्ञान की तरह ज्योतिष को बी कसौटी पर कस सकें ।
Replyबड़ा कठिन प्रश्न पूछ लिया आपने! मेरे ख्याल से एक ही समय में जन्म लेनेवालों की भविष्य एक नहीं हो सकती! अच्छा लगा आपका ये पोस्ट! बहुत कुछ जानने को मिल रहा है!
ReplyBahut sundar likha apne. aisi prashan aksar manav ke dimag men tairate rahte hain...lajwab.
Replyओ जी एक दम ठीक कहा आपने. ज्योतिष अब हल्की चीज नहीं रह गयी...आशा है और भी बहुत आगे जानने को मिलेगा.
Replyboht achha lekh hai.....i strongly believe its a science...
Replyजे कृष्णमूर्ति ने कभी कहा था, कि ज्योतिष का अगर मैं धार्मिक आधार न भी मानूँ तो वैज्ञानिक ज़रुरु मानता हूँ. ज्योतिष अपने फलित के कारण अधिक बदनाम हुआ है, और इसकी कमज़ोर प्रणालियों को आज के ढृढ़ विचारधारा वाले लोगों ने तोड़कर रख दिया है.आप ज्योतिष में अच्छी दखल रखती है,परन्तु में ज्योतिष में फलित से ज्यादा गणित को महत्त्व देता हूँ, फलित ज्योतिष का अन्य पक्ष है, ज्योतिष का कार्य सिर्फ हमारे भविष्य से अवगत करने जैसा मूर्खतापूर्ण काम नहीं होना चाहिये, क्यूंकि १२ खाके कभी किसी आदमी के नहीं बनते, ये वक़्त के बनते हैं, और चुनांचे हमारा जन्म उस वक़्त का होता है तो हम में भी परिवर्तन के आसार दिखते रहते हैं, इसी आधार पर ज्योतिष का वैज्ञानिक रूप में अलग महत्त्व है, सीधे इसको फलित या भविष्य के खाके कहकर ठुकरा देना ठीक नहीं है. आज भी निश्चित सूर्यग्रहण का दावा ज्योतिष के द्बारा ही किया जाता है, हाँ में इसके विरोध में हूँ कि इसे किसी धर्म अथवा जाती विशेष से जोड़ा जाये. मेरे हिसाब से गलीलियो भी ज्योतिषी था,कीरो भी, के. पी.भी तथा बी वी रमण एवं ऍन सी लाहिरी भी.
ReplyNishant kaushik
संगीता पुरी जी नन्हे पंखों को आपके आशीर्वाद की जरूरत है। काफी दिनों बाद आपने मासूमों की तरफ रुख किया, तहे दिल से शुक्रिया। आपने अपने ब्लॉग पर जो लिखा है उससे ज्योतिष शास्त्र को लेकर लोगों में फैली कई भ्रांतियां दूर होंगी। आप जैसे गुणी और ज्योतिष के जानकारों की जरूरत है। कृपया यह बताने की कोशिश करें कि ऐसे कौन से हालात हैं जिस कारण मंद्दबुद्धि बच्चे पैदा होते हैं और हम उसे कैसे रोक सकते हैं। मेरे बेटे कुशाग्र को जन्म से बुध की महादशा लगी थी। तमाम जगहों पर दिखाया। कालसर्प योग की पूजा भी की, छहमुखी रूद्राक्ष घिसकर गंगाजल के साथ खिलाया। ऊपर वाले के आशीर्वाद से कुछ तो असर हुआ पर अभी भी वह चलने, बोलने और बैठने में लाचार है। हां संगीत का प्रेमी है और उसे कई दर्जन गाने याद हैं जिन्हें सुनते ही वह जोर-जोर से खुशी से चिल्लेने लगता है। माफ करेंगी मेरी टिप्पणी की धारा कहीं और बह गई पर आपकी विद्वता देखकर मुझे लगता है कि आप कोई ज्योतिषीय उपाय बताएंगी जिसका अनुसरण कर इस तरह के बच्चों के जन्म लेने की संख्या कमेगी।
Replyउम्मीद और आशा के साथ नन्हे पंखों की ओर से आपका
अमलेन्दु अस्थाना
ज्योतिष पर आपकी बेहद मजबूत पकड़ का मैं शुरू से कायल हूँ. इस लेख में आपने इतनी जटिल समस्या उठा ली जिसमें भटकाव, दुहराव की सम्भावनाएं थीं. एक बहुत अच्छी जानकारी दी आपने, मौत के बारे सही सही नहीं कहा जा सकता. यहाँ तो जिसे ज्योतिष का 'ज' भी आ गया, वह भी जिंदगी-मौत.....जाने क्या-क्या एलान करता रहता है. आपके स्नेह का आभारी हूँ.
ReplyJyotish par apki prabhavi pakad hai, apki har post behatrin hoti hai.
Replyरक्षाबंधन पर्व की शुभकामनाओं सहित-
आकांक्षा,
शब्द-शिखर
main aap ke blog ko padhunga. aap ki sakaratmak soch banaye rakhen...ek din chiplunkar ji bhi manane lag jayenge.
Replyjyotish par aapki jaankari vakai behtareen hai ..aasha karti hu ki aap apne gyan se ham sabko labhanvit karte rahengi
Replyआपको जन्माष्टमी और स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक वधाई
Replyआपको जनमाष्टमी और स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं।
Replyस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
Replyस्वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत शुभकामनायें
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Replyaha to aap jyotishi ki gyata hai.... ye to bada hunar hai....kaun nahi janana chahta bhavishya .... aapne saraha uska shukriya
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Replyyadi janm lene ka sthan bhi ek hi ho.thode se samay our sthaan ka firk bhi effect dalta hai---i think so.kuch haalat bhi bhavishya ki rekha tay karti hai,.
Replyएक ही समय में पैदा हुऐ अलग-अलग व्यक्तियों का भविष्य एक सा नहीं होता यह बात तो सही है लेकिन क्यों नहीं होता यह आपने स्पष्ट नहीं किया...?
Replyवास्तव में कुंडली में बनते योग को बांच कर उसे ही 100% मानने की भूल ही इस विवाद का कारण बनती है.जातक के जीवन में इस योग को 20% उसके सामाजिक व् पारिवारिक दशा पर निर्भर होना पड़ता है.20% जातक से जुड़े रक्त सम्बन्धियों का रोल इस योग में होता है ,20% उसका स्वयं का प्रयास अर्थात कर्म यहाँ प्रभावित करने वाला कारक बनता है,बाकि का 20% हम हासिल शाश्त्रों के सुझाये उपायों(जिनमे ज्योतिष आदि सामिल हैं) द्वारा इसे प्रभावित करते हैं.तब जाकर योग का वास्तविक प्रतिशत प्राप्त होने की गणना करना बेहतर निर्णय देने में सहायक बनता है. सामान योग में जन्मा जातक अफ्रीका के जंगलों में आदिवासी कबीले का मुखिया बनता है.यही योग अमेरिका में उसे बराक ओबामा भी बना सकता है.सरकारी विभाग से धन प्राप्ति का योग एक चपरासी की कुंडली में भी विराजमान होता है व् अधिकारी की भी.
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