astrology vs astronomy
क्या है गत्यात्मक ज्योतिष ?
भारत में ज्योतिष का अध्ययन बहुत ही पुराना है। प्राचीन ज्योतिष के ग्रंथों में वर्णित ग्रहों की अवस्था के अनुसार मनुष्य के जीवन पर पड़ने वाले ग्रहों की गति के सापेक्ष उनकी शक्ति के प्रभाव के 12-12 वर्षों का विभाजन `गत्यात्मक दशा पद्धति´ कहलाता है। यह सिद्धांत, परंपरागत ज्योतिष पर आधारित होते हुए भी पूर्णतया नवीन दृष्टिकोण पर आधारित है।
इस पद्धति में वर्षों से चली आ रही `विंशोत्तरी दशा पद्धति´ को स्थान न दे कर नये प्रमेयों तथा सूत्रों को स्थान दिया गया है। इसमें प्रत्येक ग्रह के प्रभाव को अलग-अलग 12 वर्षों के लिए निर्धारित किया गया है। साथ ही ग्रहों की शक्ति निर्धारण के लिए स्थान बल, दिक् बल, काल बल, नैसर्गिक बल, दृक बल, अष्टक वर्ग बल से भिन्न ग्रहों की गतिज और स्थैतिज ऊर्जा को स्थान दिया गया हैं। भचक्र के 30 प्रतिशत तक के विभाजन को यथेष्ट समझा गया है तथा उससे अधिक विभाजन की आवश्यकता नहीं समझी गयी है। लग्न को सबसे महत्वपूर्ण राशि समझते हुए इसे सभी प्रकार की भविष्यवाणियों का आधार माना गया है।
चंद्रमा मन का प्रतीक ग्रह है। बचपन में सभी अपने मन के अनुसार ही कार्य करना पसंद करते हैं। इसलिए इस अवधि को चंद्रमा का दशा काल माना गया है, चाहे उनका जन्म किसी भी नक्षत्र में क्यों न हुआ हो। चंद्रमा की गत्यात्मक शक्ति के निर्धारण के लिए इसकी सूर्य से कोणिक दूरी पर ध्यान देना आवश्यक होगा। यदि चंद्रमा की स्थिति सूर्य से 0 डिग्री की दूरी पर हो, तो चंद्रमा की गत्यात्मक शक्ति 0 प्रतिशत, यदि 90 डिग्री, या 270 डिग्री दूरी पर हो, तो चंद्रमा की गत्यात्मक शक्ति 50 प्रतिशत और यदि 180 डिग्री की दूरी पर हो, तो चंद्रमा की गत्यात्मक शक्ति 100 प्रतिशत होती है। चंद्रमा की गत्यात्मक शक्ति के अनुसार ही जातक अपनी परिस्थितियां प्राप्त करते हैं। यदि चंद्रमा की गत्यात्मक शक्ति 0 प्रतिशत हो, तो उन भावों की कमजोरियों, जिनका चंद्रमा स्वामी है तथा जहां उसकी स्थिति है, के कारण जातक के बाल मन के मनोवैज्ञानिक विकास में बाधाएं उपस्थित होती हैं। यदि चंद्रमा की गत्यात्मक शक्ति 50 प्रतिशत हो, तो उन भावों की अत्यिधक स्तरीय एवं मजबूत स्थिति, जिनका चंद्रमा स्वामी है तथा जहां उसकी स्थिति है, के कारण बचपन में जातक का मनोवैज्ञानिक विकास संतुलित ढंग से होता है। यदि चंद्रमा की गत्यात्मक शक्ति 100 प्रतिशत हो, तो उन भावों की अति सहज, सुखद एवं आरामदायक स्थिति, जिनका चंद्रमा स्वामी है तथा जहां उसकी स्थिति है, के कारण बचपन में जातक का मनोवैज्ञानिक विकास काफी अच्छा होता है। 5वें-6ठे वर्ष में चंद्रमा का प्रभाव सर्वाधिक दिखायी पड़ता है।
बुध विद्या, बुद्धि और ज्ञान का प्रतीक ग्रह है। 12 वर्ष से 24 वर्ष की उम्र विद्याध्ययन की होती है, चाहे वह किसी भी प्रकार की हो। इसलिए इस अविध को बुध का दशा काल माना गया है। बुध की गत्यात्मक शक्ति के निर्धारण के लिए इसकी सूर्य से कोणिक दूरी के साथ इसकी गति पर भी ध्यान देना आवश्यक होता है। यदि बुध सूर्य से 0 डिग्री की दूरी पर स्थित हो और इसकी गति वक्र हो, तो इसकी गत्यात्मक शक्ति 0 प्रतिशत होती है। यदि बुध सूर्य से 26-27 डिग्री के आसपास स्थित हो तथा बुध की गति 10 प्रतिदिन की हो, तो इसकी गत्यात्मक शक्ति 50 प्रतिशत होती है। यदि बुध सूर्य से 0 डिग्री की दूरी पर स्थित हो और बुध की गति 2 डिग्री प्रतिदिन के आसपास हो, तो इसकी गत्यात्मक शक्ति 100 प्रतिशत होती है। बुध की गत्यात्मक शक्ति के अनुसार ही जातक विद्यार्थी जीवन में अपनी परिस्थितियां प्राप्त करते हैं। यदि बुध की शक्ति 0 प्रतिशत हो, तो उन संदर्भो की कमजोरियों, जिनका बुध स्वामी है तथा जिसमें उसकी स्थिति है, के कारण जातक के मानसिक विकास में बाधाएं आती हैं। यदि बुध की शक्ति 50 प्रतिशत के आसपास हो, तो उन भावों की स्तरीय एवं मजबूत स्थिति, जिनका बुध स्वामी है तथा जिसमें उसकी स्थिति है, के कारण जातक का मानसिक विकास उच्च कोटि का होता है। यदि बुध की शक्ति 100 प्रतिशत के आसपास हो, तो उन भावों की आरामदायक स्थिति, जिनका बुध स्वामी है तथा जिसमें उसकी स्थिति है, के कारण जातक का मानसिक विकास सहज ढंग से होता है। 17वें-18वें वर्ष में यह प्रभाव सर्वाधिक दिखायी पड़ता है।
मंगल शक्ति एवं साहस का प्रतीक ग्रह है। युवावस्था, यानी 24 वर्ष से 36 वर्ष की उम्र तक जातक अपनी शक्ति का सर्वाधिक उपयोग करते हैं। इस दृष्टि से इस अविध को मंगल का दशा काल माना गया है। मंगल की गत्यात्मक शक्ति का आकलन भी सूर्य से इसकी कोणिक दूरी के आधार पर किया जाता है। यदि मंगल सूर्य से 180 डिग्री की दूरी पर स्थित हो, तो मंगल की गत्यात्मक शक्ति 0 प्रतिशत, यदि 90 डिग्री की दूरी पर स्थित हो, तो मंगल की गत्यात्मक शक्ति 50 प्रतिशत, यदि 0 डिग्री की दूरी पर स्थित हो, तो मंगल की गत्यात्मक शक्ति 100 प्रतिशत होगी। मंगल की गत्यात्मक शक्ति के अनुसार ही जातक अपनी युवावस्था में अपनी परिस्थितियां प्राप्त करते हैं। यदि मंगल की शक्ति 0 प्रतिशत के आसपास हो, तो उन भावों की कमजोरियों, जिनका मंगल स्वामी है और जिसमें उसकी स्थिति है, के कारण जातक के उत्साह में कमी आती है। यदि मंगल की शक्ति 50 प्रतिशत के आसपास हो, तो उन भावों की अत्यिधक स्तरीय एवं मजबूत स्थिति, जिनका मंगल स्वामी है तथा जिसमें उसकी स्थिति है, के कारण उनका उत्साह उच्च कोटि का होता है। यदि मंगल की शक्ति 100 प्रतिशत के आसपास हो, तो उन भावों की सुखद एवं आरामदायक स्थिति, जिनका मंगल स्वामी है और जिसमें उसकी स्थिति है, के कारण जातक की परिस्थितियां सहज होती हैं। 29वें-30वें वर्ष में यह प्रभाव सर्वाधिक दिखायी पड़ता है।
शुक्र चतुराई का प्रतीक ग्रह है। 36 वर्ष से 48 वर्ष की उम्र के प्रौढ़ अपने कार्यक्रमों को युक्तिपूर्ण ढंग से अंजाम देते हैं। इसलिए इस अवधि को शुक्र का दशा काल माना गया है। शुक्र की गत्यात्मक शक्ति के आकलन के लिए, सूर्य से इसकी कोणिक दूरी के साथ-साथ, इसकी गति पर भी ध्यान देना आवश्यक होता है। यदि शुक्र सूर्य से 0 डिग्री की दूरी पर हो और इसकी गति वक्र हो, तो शुक्र की गत्यात्मक शक्ति 0 प्रतिशत होती है। यदि शुक्र सूर्य से 45 डिग्री की दूरी के आसपास स्थित हो और इसकी गति प्रतिदिन 1 डिग्री की हो, तो शुक्र की गत्यात्मक शक्ति 50 प्रतिशत होती है। यदि शुक्र की सूर्य से दूरी 0 डिग्री हो और इसकी गति प्रतिदिन 1 डिग्री से अधिक हो, तो शुक्र की गत्यात्मक शक्ति 100 प्रतिशत होती है। शुक्र की गत्यात्मक शक्ति के अनुसार ही जातक अपनी प्रौढ़ावस्था पूर्व का समय व्यतीत करते हैं। यदि शुक्र की शक्ति 0 डिग्री हो, तो उन संदर्भों की कमजोरियों, जिनका शुक्र स्वामी है तथा जिसमें उसकी स्थिति है, के कारण जातक अपनी जिम्मेदारियों का पालन करने में कठिनाई प्राप्त करते हैं। यदि शुक्र की शक्ति 50 प्रतिशत के आसपास हो, तो उन संदर्भों की मजबूत एवं स्तरीय स्थिति, जिनका शुक्र स्वामी है तथा जिसमें उसकी स्थिति है, के कारण जातक अपनी जिम्मेदारियों का पालन काफी सहज ढंग से कर पाते हैं। 41वें-42वें वर्ष में यह प्रभाव सर्वाधिक दिखायी पड़ता है।
ज्योतिष की प्राचीन पुस्तकों में मंगल को राजकुमार तथा सूर्य को राजा माना गया है। मंगल के दशा काल 24 से 36 वर्ष में पिता बनने की उम्र 24 वर्ष को जोड़ दिया जाए, तो यह 48 वर्ष से 60 वर्ष हो जाता है। इसलिए इस अविध को सूर्य का दशा काल माना गया है। एक राजा की तरह ही जनसामान्य को सूर्य के इस दशा काल में अधिकाधिक कार्य संपन्न करने होते हैं। सभी ग्रहों को ऊर्जा प्रदान करने वाले अिधकतम ऊर्जा के स्रोत सूर्य को हमेशा ही 50 प्रतिशत गत्यात्मक शक्ति प्राप्त होती है। इसलिए इस समय उन भावों की स्तरीय एवं मजबूत स्थिति, जिनका सूर्य स्वामी है तथा जिसमें उसी स्थिति है, के कारण उनकी बची जिम्मेदारियो का पालन उच्च कोटि का होता है।
बृहस्पति धर्म का प्रतीक ग्रह है। 60 वर्ष से 72 वर्ष की उम्र के वृद्ध, हर प्रकार की जिम्मेदारियों निर्वाह कर, धार्मिक जीवन जीना पसंद करते हैं। इसलिए इस अविध को बृहस्पति का दशा काल माना गया है। बृहस्पति की गत्यात्मक शक्ति का आकलन भी सूर्य से इसकी कोणिक दूरी के आधार पर किया जाता है। यदि बृहस्पति सूर्य से 180 डिग्री की दूरी पर स्थित हो, तो बृहस्पति की गत्यात्मक शक्ति 0 प्रतिशत, 90 डिग्री की दूरी पर स्थित हो, तो बृहस्पति की गत्यात्मक शक्ति 50 प्रतिशत तथा यदि 0 डिग्री की दूरी पर स्थित हो, तो बृहस्पति की गत्यात्मक शक्ति 100 प्रतिशत होगी। बृहस्पति की गत्यात्मक शक्ति के अनुसार ही जातक अपने वृद्ध जीवन में अपनी परिस्थितियां प्राप्त करते हैं। यदि बृहस्पति की शक्ति 0 प्रतिशत के आसपास हो, तो उन भावों की कमजोरियों, जिनका बृहस्पति स्वामी है तथा जिसमें उसकी स्थिति है, के कारण उनका जीवन निराशाजनक बना रहता है। यदि बृहस्पति की शक्ति 50 प्रतिशत के आसपास हो, तो उन भावों की मजबूत एवं स्तरीय स्थिति, जिनका बृहस्पति स्वामी है तथा जिसमें उसकी स्थिति है, के कारण अवकाश प्राप्ति के बाद का जीवन उच्च कोटि का होता है। यदि बृहस्पति की शक्ति 100 प्रतिशत के आसपास हो, तो उन भावों की आरामदायक स्थिति, जिनका बृहस्पति स्वामी है और जिसमें इसकी स्थिति है, के कारण जातक की परिस्थितियां वृद्धावस्था में काफी सुखद होती हैं।
प्राचीन ज्योतिष के कथनानुसार ही शनि को, अतिवृद्ध ग्रह मानते हुए, जातक के 72 वर्ष से 84 वर्ष की उम्र तक का दशा काल इसके आधिपत्य में दिया गया है। शनि की गत्यात्मक शक्ति का आकलन भी सूर्य से इसकी कोणिक दूरी के आधार पर ही किया जाता है। यदि शनि सूर्य से 180 डिग्री की दूरी पर हो, तो इसकी गत्यात्मक शक्ति 0 प्रतिशत होती है। यदि शनि सूर्य से 90 डिग्री की दूरी पर स्थित हो, तो इसकी गत्यात्मक शक्ति 50 प्रतिशत होती है। यदि शनि सूर्य से 0 डिग्री की दूरी पर स्थित हो, तो इसकी गत्यात्मक शक्ति 100 प्रतिशत होती है। शनि की शक्ति के अनुसार ही जातक अति वृद्धावस्था में अपनी परिस्थितियां प्राप्त करते हैं। यदि शनि की शक्ति 0 प्रतिशत के आसपास हो, तो उन भावों की कमजोरियों, जिनका शनि स्वामी है, या जिसमें उसकी स्थिति है, के कारण अति वृद्धावस्था का उनका समय काफी निराशाजनक होता है। यदि शनि की गत्यात्मक शक्ति 50 प्रतिशत के आसपास हो, तो उन भावों की अत्यिधक मजबूत एवं स्तरीय स्थिति, जिनका शनि स्वामी है, या जिसमें उसकी स्थिति है, के कारण उनका यह समय उच्च कोटि का होता है। यदि शनि की शक्ति 100 प्रतिशत के आसपास हो, तो उन भावों की अति सुखद एवं आरामदायक स्थिति, जिनका शनि स्वामी हो, या जिसमें उसकी स्थिति हो, के कारण, वृद्धावस्था के बावजूद, उनका समय काफी सुखद होता है।
इसी प्रकार जातक का उत्तर वृद्धावस्था का 84 वर्ष से 96 वर्ष तक का समय यूरेनस, 96 से 108 वर्ष तक का समय नेप्च्यून तथा 108 से 120 वर्ष तक का समय प्लूटो के द्वारा संचालित होता है। यूरेनस, नेप्च्यून एवं प्लूटो की गत्यात्मक शक्ति का निधाZरण भी, मंगल, बृहस्पति और शनि की तरह ही, सूर्य से इसकी कोणात्मक दूरी के आधार पर किया जाता है। इस प्रकार इस दशा पद्धति में सभी ग्रहों की एक खास अविध में एक निश्चित भूमिका होती है। विंशोत्तरी दशा पद्धति की तरह एक मात्र चंद्रमा का नक्षत्र ही सभी ग्रहों को संचालित नहीं करता है।
सभी ग्रह, अपनी अवस्था विशेष में कुंडली में प्राप्त बल और स्थिति के अनुसार, अपने कार्य का संपादन करते हैं। लेकिन इन 12 वर्षों में भी समय-समय पर उतार-चढ़ाव आना तथा छोटे-छोटे अंतरालों के बारे में जानकारी इस पद्धति से संभव नहीं है। 12 वर्ष के अंतर्गत होने वाले उलट-फेर का निर्णय `लग्न सापेक्ष गत्यात्मक गोचर प्रणाली´ से करें, तो दशा काल से संबंधित सारी कठिनाइयां समाप्त हो जाएंगी। इन दोनों सिद्धांतों का उपयोग होने से ज्योतिष विज्ञान दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति के पथ पर होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है।
'गत्यात्मक ज्योतिष' टीम से मुलाक़ात करें।
45 टिप्पणियाँ
Click here for टिप्पणियाँकाफी अच्छी जानकारी .
Replyसंगीता जी!
Replyआपने सभी ग्रहों का विद्वतापूर्ण ढंग से
सुन्दर विश्लेषण प्रस्तुत किया है।
धन्यवाद।
जाल-जगत पर आपकी सक्रियता को
नमन करता हूँ।
bahut din baad kuch likha tha dar raha tha kaya hoga lakin aapki tippni ne sahas bada diya thanyevad.
Replyसंगीता जी,
Replyजानकारी के लिए धन्यवाद, मगर अफ़सोस कि इतनी गहरी जानकारी अपने बिलकुल भी पल्ले नहीं पडी.
You can be our leader in this facaulty, and expect to take more pains to modify our lives with applied knowledge of Jyotish.
ReplyGreat service.
संगीता जी चूंकि मेरी ज्योतिश मे रुची रही है इस लिये आप्के लेख को 2-3 बार देखना होगा बहुत ही व्स्तार सेेआपने बताया है इस की प्रमाणिकता को परखना चाहूंगी कृ्प्या ऐसे शोधपरक लेख लिखते रहा करें बहुत बहुत धन्यवाद्
Replysangeeta ji ,namskar
Replybahut hi achchhi jankari di hain aapane .
kya aap janm patri bhi dekh kar bata detin hain ?
batayen
renu ..
sangeeta ji,
Replyitni achchhi jaankaari ke liye dhanyawaad.
aap ne itna kuch likh diya hai ki ab joytis pr yakeen karna hi hoga....devtaon ke is gyaan ko arjit krne ke liye shukriya or shubhkamnayen.
Replyकाफी रोचक और जानकारी भरी पोस्ट है। इस अमुल्य जानकारी के लिए आपको धन्यवाद।
Replyसंगीता जी
Replyबहुत हे ज्ञानवर्धक ब्लॉग है आपका.
और आपका मेरी रचना को सराहने का भी बहुत शुक्रिया !!!
संगीता जी नमस्कार!
Replyज्योतिष पर आप क ज्ञान अद्भुत है,साथ ही आप की साहित्यिक विश्लेषण की क्षमता भी प्रसंसनीय है !एक गंभीर विषय को सहज बनाने के सार्थक प्रयास के लिए बधाई!
संगीता जी नमस्कार!
Replyज्योतिष पर आप क ज्ञान अद्भुत है,साथ ही आप की साहित्यिक विश्लेषण की क्षमता भी प्रसंसनीय है !एक गंभीर विषय को सहज बनाने के सार्थक प्रयास के लिए बधाई!
संगीता जी नमस्कार!
Replyज्योतिष पर आप क ज्ञान अद्भुत है,साथ ही आप की साहित्यिक विश्लेषण की क्षमता भी प्रसंसनीय है !एक गंभीर विषय को सहज बनाने के सार्थक प्रयास के लिए बधाई!
संगीता जी नमस्कार!
Replyज्योतिष पर आप क ज्ञान अद्भुत है,साथ ही आप की साहित्यिक विश्लेषण की क्षमता भी प्रसंसनीय है !एक गंभीर विषय को सहज बनाने के सार्थक प्रयास के लिए बधाई!
grah aur nachatron ke bare me kaphi acchi jankari hai lekin kya aaj ke yug me inpe wiswas kiya ja sakta hai .
ReplyBahut gyanprad evam aapki buddhimatta ka paricharak
Replyसंगीता जी, 'रेत का तकिया' पर आपकी प्रशंसापूर्ण टिप्पणी मन को बहुत अच्छी लगी,परन्तु मैं यह जानता हूँ कि यह मेरे प्रयासों कि लियाकत से कही ज्यादा है.आपका आभार...ज्योतिष पर आपका समर्पण मेरे लिए सुखद है...मेरी जिज्ञासा होने से इस पर अपनी राय कुछ समय बाद व्यक्त करूंगा..आपका आलेख पढने के बाद ज्योतिष के उर्जा प्रवाह एव अंतरानुभुती सिध्धांत पर एक लेख लिखना आरम्भ किया है,उसे मैं आपके ब्लॉग पर प्रेषित करना चाहूंगा..क्या मैं आपके ब्लॉग पर ज्योतिष विषय पर कोई लेख भेज सकता हूँ..?
Replyगत्यात्मक ज्योतिष् के बारे मे,खूब बताया आपने
Replyधन्यवाद स्वीकार करे,क्या ज्ञान बढ़ाया आपने,
ज्योतिष् वो सब बतलाता है,जो संभवहै फ्यूचर मे,
धर्म,कर्म सब यही फलित है,ये समझाया आपने.
मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
Replyसंगीता जी, आप लगातार मेरे ब्लॉग पर कमेंट देती हैं, मुझे बहुत अच्छा लगता है। लिखने की इच्छा और भी बढ़ जाती है। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आगे भी ऐसी ही अपेक्षा रहेगी
Replysangita madam,
Replynamaste
jyotish ki aor mera bhi rujhan hai lekin aapke gyan ke aage mera gyan to bahut phika hai.
bahut dino se hi aise lekh ki jarurat thi samay-samay par aap se gyan leta rahunga,lal kitab par kuch ho to batayiga
aapki sarahana ke liye aapka abhari hu
sandeep
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Replysir, mera naam sudhakar soni hai mera date of birth 6 march 1981 at 1:50 pm in sikar[rajasthan[ hai kripya mere future k aare me bataane ka kasht karen
Replyaapka blog padhkar jyotish mein ruch badhi.
Replyज्योतिष में मै भी काफ़ी रुची रखती हूं।अब नियमित आपका ब्लॉग पढ़ती रहुँगी।
Replyमेरे ब्लॉग पर आने और उत्साहवर्द्धन के लिये धन्यवाद।
संगीता जी, इसके पहले वाला कमेन्ट गलती से मेरे श्रीमान् जी के नाम से पोस्ट हो गया है। एक ही कम्प्यूटर पर काम करने से यह गड़बड़ हो गयी है। :)
Replyविद्वतापूर्ण, सुन्दर विश्लेषण व गहरी जानकारी है।
Replyधन्यवाद।
आपकी सक्रियता के लिए बधाई!
thanks
Replyaapne mere blog dekha aasha hai aage bhi salah milte rahenge.
aapki jyotish se sabandhit batein achchhi hai.
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Replybahut hi sunder gyanvardhak jaankari , kabhi Mangal-shani yuti ke baare main bhi samjhaiye ,asha karta hun aap ka agla lekh isi par adharit hoga .
Replybahut bahut shubkamnayen
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Replygrahon aur nakshatron se judi aisi jankaari ki talaash me mai varshon se tha .aaj aapke is kosh ke madhyam se meri tallsh puri ho gayi . sath hi jankari ke roop me aapka ashirvad bhi mil gayaa .
Replysangita zee halanki mera man ishwar o leker dol raha hai per phir bhi apne jis tarah se ankganit samjhaya hai usese grahon mein mera vishwas badha hai. Iske lye apko sadhubad.
Replysangeeta ji,
Replythank you so much for your kind words an inspiration....
keep in touch.
सुन्दर विश्लेषण,अच्छी जानकारी.. बहुत बहुत धन्यवाद्
Replyहोसला अफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका, ब्लॉग पर आने के लिए भी शुक्रिया, जब ब्लॉग शुरू किया था तो थोडा मायूस था, अब जब आप जैसे अनुभवी ब्लोगेर्स की इतनी कमेंट्स आ रही है तो लगता है अच्छा ही लिखा है शायद। खैर आपकी प्रतिक्रियाओं की हमेशा जरुरत रहेगी आगे बढ़ने के लिए। हाथ की रेखाएं बदलने के लिए आप से किसी दिन जरुर गुजारिश करूंगा। मोक्ष।
Replyसंगीता जी,
Replyइस अमुल्य जानकारी के लिए आपको धन्यवाद...
एक गंभीर विषय को सहज बनाने के सार्थक प्रयास के लिए बधाई!!!
सादर ब्लॉगस्ते!
Replyआपका संदेश अच्छा लगा।
अब सरकोजी मामा ठहरे ब्रूनी मामी की नग्न तस्वीर के दीवाने। वो क्या जाने बुर्के की महिमा। पधारें "एक पत्र बुर्के के नाम" सुमित के तडके "गद्य" पर आपकी प्रतीक्षा में है
thanks.ur blog is quite intresting.
Replyhaya
ज्योतिष विधा पर आपने बहुत ही अच्छी जानकारी दी है
Replyज्योतिष विधा पर आपने बहुत ही अच्छी जानकारी दी है
Replyआपको जन्माष्टमी और स्वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत शुभकामनायें
Replyjaankari to achi hai par palley bilkul nahi padi. lal kitab k baarey me bhi batayein.
ReplyJankari to thik hai
Reply