एक ज्योतिषी से लोगों की अपेक्षाएं बहुत होती हैं


एक ज्योतिषी से लोगों की अपेक्षाएं बहुत होती हैं 

आज कोई भी व्यक्ति जब एक ज्योतिषी के पास पहुंचता है तो उस व्यक्ति की ज्योतिषी से बहुत सारी अपेक्षाएं होती हैं। आम लोग यही समझते हैं कि ज्योतिषी को किसी के भविष्य की पूरी जानकारी होती है , अत: वह उस व्यक्ति के भविष्य की सारी बाते बता देगा। दूसरी ओर तरह-तरह के ज्योतिषी होते हैं , सभी के दावे एक से बढ़कर एक होते हैं । शरीर के रंग , कद ,स्वरुप , धन की मात्रा ,भाई-बहनों की संख्या , शैक्षणिक योग्यता , बाल-बच्चों की संख्या , शादी की तिथि , शादी की दिशा, मृत्यु का समय , लॉटरी से धन प्राप्त करने का समय ,व्यक्ति का नाम , पिताजी का नाम , हस्तरेखा से कुंंडली निर्माण आदि के दावे किसी ज्योतिषी की ज्योतिषीय योग्यता को प्रचारित करने के लिए विज्ञापन का काम भले ही कर जाए , उपरोक्त सभी संदभोZ की जानकारियॉ अभी तक का विकासशील फलित ज्योतिष किसी भी हालत में प्रदान नहीं कर सकता। इस प्रकार की जिज्ञासा को लेकर कोई भी व्यक्ति किसी ज्योतिषी के यहॉ पहुंचे तो उसे निराशा ही मिलेगी। ज्योतिषी से लोगों की अपेक्षाएं बहुत अधिक होती हैं। एक सज्जन पूछ रहें हैं- मेरी पुत्री की शादी किस दिशा में कब और कितनी दूरी पर होगी ? क्या इस प्रश्न का उत्तर सचमुच फलित ज्योतिष से दिया जा सकता है ?

वैदिक काल , पौराणिक काल , प्राक् ऐतिहासिक काल में स्वयंवर हुआ करते थे । उस समय वर-वधू अपने जोडे का खुद चयन किया करते थे । किन्तु उसके पश्चात् भारत में विदेशी आक्रमण होते चले गए और प्रतिष्ठा बचा पाने का भय इतना प्रबल हो गया कि लोगों ने अपनी पुति्रयों का विवाह जन्म लेने के साथ ही तय करना शुरु कर दिया। कहीं कहीं ऐसा भी उदाहरण देखने को मिला कि दो गर्भवती सहेलियॉ परस्पर यह तय करती थी कि एक दूसरे को पुत्र-पुति्रयॉ हुईं तो उनकी शादी कर दी जाएगी। सौ वषZ पूर्व तक बालक बालिकाओं की शादी शैशवकाल में की जाती थी। आज से 50 वषZ पूर्व शादियॉ उस समय होती थी जब लड़के लड़कियॉ क्रमश: पंद्रह और दस वषZ के हुआ करते थे। पच्चीस वषZ पूर्व बालिग होने पर ही विवाह का प्रचलन था , पर इस समय जब इक्कीसवीं सदी का आरंभ हो रहा है ,कोई भी जागरुक लड़का या लड़की तबतक शादी के पक्ष में नहीं होते , जबतक वे स्वावलम्बी नहीं बन जाते। इस समय वैवाहिक बंधन में बंधनेवालों की उम्र कभी-कभी 25-30 वषोZं से भी अधिक होती है। 

किसी संदर्भ की इतनी अपेक्षा क्यों ?


ध्यान देने की बात यह है कि एक ही ग्रह भिन्न भिन्न काल में कभी बाल्यावस्था में , कभी किशोरावस्था में ,और कभी युवावस्था में विवाह का योग उत्पन्न करता है। 15वी शताब्दी से 19वी शताब्दी तक सभी के लिए वैवाहिक योग शैशवावस्था में , 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में किशोरावस्था के आरंभ में ,20वीं शताब्दी के अंत में किशोरावस्था के अंत में तथा इक्कीसवी सदी के प्रारंभ में युवावस्था के मध्य में वैवाहिक योग उत्पन्न होता है । क्या इन बातों से ग्रह की प्रकृति और कार्यशैली में एकरुपता दिखाई पड़ती है ? यदि नही तो ज्योतिषी विवाह के समय के उल्लेख का दावा किस प्रकार करतें हैं ? ज्योतिष पर विश्वास करने वाले लोग इस संदर्भ में इतनी अपेक्षाएं क्यों रखते हैं ? यह बात दूसरी है कि देश काल के अनुसार सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए ग्रह की स्थिति और उसकी गत्यात्मकता से वैवाहिक काल की संभावनाओं पर परिचर्चा भले ही कर ली जाए।


20वीं शताब्दी के प्रारंभ या मध्य तक यातायात की बड़ी सुविधा नहीं थी , संपर्क-सूत्र भी महत्वपूर्ण नहीं थे , अत: शादी-विवाह आसपास निकटस्थ ग्राम में होते थे। जैसे-जैसे यातायात की सुविधाएं बढ़ती गयी , संपर्क-सूत्र बढते चले गए , सभ्यता का विकास होता गया , लोग िशक्षित होते गए , अन्तर्जातीय , अन्तप्राZंतीय , दूरस्थ , यहॉ तक कि अब देश-देशांतर तक की शादियॉ प्रचलित हो गयी हैं। वही ग्रह पहले सीमित जगहों में शादियॉ करवाते थे , अब दम्पत्ति पृथ्वी के दो छोर के भी हो सकते हैं। विवाह-सूत्र में बंधनेवाले अब किसी दूरी की परवाह नहीं करते हैं । अत: संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि कुंडली के ग्रहों को देखकर यह कदापि नहीं बतलाया जा सकता है कि जातक की शादी कहीं निकट स्थल में होनेवाली है या फिर काफी दूर। इसका कारण है , लोगों की मनोवृत्ति में आया बदलाव। पहले लोग अपने गॉव या आसपास के गॉवों में बसनेवाले अपनी जाति के लोगों को ही असली बिरादरी समझते थे , दूर की अपनी ही जाति के लोगों की कुलीनता पर संशय किया जाता था। अत: उनसे संबंध करके अपनी प्रतिष्ठा को दॉव पर से लोग बचते थे।


आज परिस्थितियॉ बिल्कुल भिन्न हैं। जाति और खून की पवित्रता गौण हो गयी है। धन अर्जित करने की क्षमता , कर्म और चरित्र ही प्रतिष्ठा के मापदंड बनते जा रहें हैं। वैवाहिक संबंध में दूरी अब बाधा नहीं रह गयी है। किसी भारतीय नारी या पुरुष की शादी अमेरिका या ब्रिटेन निवासी के साथ हो तो इसे शान और प्रतिष्ठा की बात समझी जाती है। दाम्पत्य जीवन में दो-चार वषोZं का वियोग हो , पत्नी 2-4 वषZ बड़ी भी हो तो इसे सहज स्वीकार कर लिया जाएगा। इस प्रकार के बदलते सामाजिक परिवेश में ग्रह के आधार पर यह निर्णय करना काफी कठिन होगा कि किसी की शादी निकट या दूर या फिर किस उम्र में होनेवाली है। 

भूतप्रेत सिद्ध कर भविष्यवाणी करना ज्योतिष नहीं


एक बार अति सामान्य और अतिवििशष्ट एक ही व्यक्ति से मिलने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ। अति सामान्य इसलिए क्योंकि वे वेश-भूषा और रुप-रंग से अतिसामान्य , वस्त्र के नाम पर लाल रंग का एकमात्र मामूली अंगोछा पहने हुए थे, मालूम हुआ , वे बाहर से आए हुए थे , अपने ही वेश-भूषा के अनुरुप कई दिनों से हरिजनों की बस्ती में मेल-मिलाप से रह रहें थे। मुझे शैशवकाल से ही ज्योतिष विद्या में रुचि है। मै मिलने के लिए उनके पास गया। उन्होने मुझे देखते ही कहा-आइए विद्यासागरजी , बैठिए। मै उनकी ज्योतिष विद्या से अवाक् था। मै अच्छी तरह जान रहा था कि इस ज्योतिषी को मेरा नाम किसी ने नहीं बताया है। फिर भी ऐसा समझते हुए कि मै इस क्षेत्र का महत्वपूर्ण विद्यार्थी हंू , मुझे आते हुए देखकर किसी ने मेरा नाम फुसफुसाकर बता दिया हो , मैने कहा- मेरे साथ जो हैं , उन्हे आपने बैठने को नहीं कहा । मैने जानबूझकर ज्योतिषी की परीक्षा लेने के लिए ये बातें कही , क्योंकि मेरे साथ जो व्यक्ति था , वह मेरे इलाके के लिए अजनबी था , उसका नाम लोग नहीं जानते थे , अत: ज्योतिषी को इसकी खबर नहीं हो सकती थी। ज्योतिषीजी मेरा इशारा समझ चुके थे। उहोेनें इस अजनबी का नाम हकलाते हुए ` अभ्यान , अभ्यान ,अभ्याननजी , बैठिए ´- कहा । वे अभ्यानन के नाम को ऐसे दूहरा रहे थे , मानो बहुत धीमी आवाज में कोई उन्हें अभ्यानन कह रहा हो और वे अंतिम `न´ को सुनने में कठिनाई महसूस कर रहें हों। इसके बाद उन्होने धारा प्रवाह बोलना शुरु कर दिया , हम कितने भाई-बहन हैं , बड़े भाई की शादी हो चुकी है , एक पुत्री है , बहन की दो पुति्रयॉ और एक पुत्र हैं। मेरे संबंध में उन्होने बताया- मै परीक्षा दे चुका हूं और परीक्षाफल का इंतजार है। अपेक्षित रिजल्ट में मामूली बाधा है। ज्योतिष की चाहे जिस विधा पर उनका पूर्ण नियंत्रण था या वे सििद्धप्राप्त पुरुष थे , उस दिन की उनकी सारी बाते जो घट चुकी थी , अक्षरश: सही थी , यहॉ तक कि कुछ दिनों बाद मेरा रिजल्ट भी निकला , मैंने मात्र एक अंक से प्रथम श्रेणी खो दी थी , परंतु मेरे सिवा बहुत लोगों के लिए बहुत सारी भविष्यवाणियॉ थी ,जो सभी गलत निकली। जो दम्पत्ति निकट भविष्य में संतान प्राप्त करनेवाले थे, उनके पुत्र-पुति्रयों से संबंधित भविष्यवाणियॉ, नौकरी प्राप्त करने की भविष्यवाणियॉ और निकट भविष्य में ही लाभ प्राप्त करने की भविष्यवाणियॉ गलत साबित हुईं। एक व्यक्ति मारकेश के प्रबल योग में पड़ा हुआ है , कहकर उसे काफी ठगा भी गया , परंतु उसे मामूली बुखार भी न हुआ।


इस पूरे प्रसंग पर गौर किया तो मेरे सामने जो निष्कर्ष आए , वह यह कि वह आदमी भूतात्मा सिद्ध किए हुए था। वह सिद्ध आत्मा ही उस व्यक्ति को वत्र्तमान तक की सारी बातें अक्षरश: बताया करता था और उसे ही वह तोते की तरह बोलता था। इस कारण भूत और वत्र्तमान की सारी बातें बिल्कुल सही थी , परंतु अधिकांश भविष्यवाणियॉ गलत थी , क्योंकि भविष्यकथन अनुमान पर आधारित था। वह व्यक्ति भूत और वत्र्तमान की सटीक चर्चा करके दूसरों का विश्वास प्राप्त करता था , परंतु भविष्य की जानकारी के लिए समुचित विद्या उसने अर्जित नहीं की थी। 
दूसरी एक बात और थी कि वह सामनेवाले को हिप्नोटाइज करता था और उसके मन की सारी बातों को बता देता था। तारीखों सहित भूत और वर्तमान की चर्चा किसी व्यक्ति को हिप्नोटाइज करके बतायी जा सकती है, किन्तु हिप्नोटिज्म विद्या के जानकार को ज्योतिषी कदापि नहीं कहा जा सकता , क्योकि भविष्य की जानकारी भूत विद्या या हिप्नोटिज्म से कदापि संभव नहीं है। 

गुणात्मक पहलू बतलाना संभव,संख्यात्मक नहीं 

इस प्रसंग का उल्लेख करना इसलिए आवश्यक समझा, क्योंकि मुझे भी पहले यही भ्रम हुआ था कि ज्योतिषी भाई-बहनों की संख्या बता सकता है , संतान की संख्या बता सकता है, यहॉ तक कि कितने पुत्र और कितनी पुति्रयॉ होंगी , इसे भी बतलाया जा सकता है , परंतु आज फलित ज्योतिष के चालीस वषीZय अध्ययन-मनन के बाद इस निष्कषZ पर पहुंचा हूं कि फलित ज्योतिष मानव-मन की मन:स्थिति , सुख-दुख आदि प्रवृत्तियों या उसकी तीव्रता का बोध कराता है न कि किसी संख्या का

भाई-बहन , सहयोगी , शक्ति , पुरुषार्थ , पराक्रम की चर्चा फलित ज्योतिष में तीसरे भाव से की जाती है। इंदिरा गॉधी का कोई सहोदर भाई या बहन नहीं था , परंतु उनके सहयोगियों की कोई कमी नहीं थी ,उनके पुरुषार्थ और पराक्रम पर भी किसी को संदेह नहीं था। भाई-बहन की संख्या का यहॉ कोई प्रयोजन नहीं है , जिनके सहयोग के लिए सहयोगी हाथों की संख्या लाखों और करोड़ों में थी।

आप कितने शक्तिशाली हैं , आपके कितने सहयोगी हैं ,इसकी चर्चा से कहीं उत्कृष्ट चर्चा यह होगी कि सहयोगी तत्वों के सृजन और उसे बनाए रखने की क्षमता आपमें कितनी है ? आपके पुरुषार्थ और पराक्रम से प्रभावित होकर आपके अनुयायियों की संख्या कितनी हो सकती है ? आपके सहयोगी या अनुयायी भी समय और स्थान के सापेक्ष कभी सैकड़ों , कभी हजारों और कभी लाखों में हो सकते हैं , परंतु ये सभी सहयोगी विपरित परिस्थितियों के उत्पन्न होने पर सहयोगी सिद्ध नहीं हो सकते हैं। हो सकता है , भाइयों की संख्या पॉच होने के बावजूद कोई काम न आए। अत: फलित ज्योतिष के लिए किसी भी परिस्थिति में संख्या बताना बहुत ही कठिन , कुछ हद तक असंभव है। जो संख्या बताने का दावा करते हैं , वे किसी न किसी प्रकार से लोगों को बेवकूफ बनाकर उसे विश्वास में लेने की चेष्टा करते हैं। इस तरह धनवान होने की बात कही जा सकती है , किसी भी हालत में नोटों की संख्या नहीं बतलायी जा सकती। स्पेकुलेशन से धन कमाने की बात कही जा सकती है , लेकिन लॉटरी के टिकट नंबर को नहीं बतलाया जा सकता । जो लॉटरी का नंबर बतलाकर लोगों को गुमराह करते हैं, वे अपने भाग्योदय के लिए लॉटरी का नंबर क्यो नहीं खोज पाते ? इसी तरह संपत्ति से संबंधित सुख और नाम यश की भविष्यवाणी की जा सकती है ,मकानों, दुकानों , सवारियों , खेतों , बागों की संख्या बता पाना फलित ज्योतिष की सीमा के अंदर नहीं आता । 
20वीं शताब्दी के मध्य में जब हमलोग हेाश ही रहें थे ,कई बार ऐसे सुयोग आए , 45-50 की उम्र के दंपत्ति को बाजे-गाजे के साथ वैवाहिक बंधन में बंधते देखा। बात समझ में हीं आ रही थी क्योंकि उस समय लोग किशोरावस्था के प्रारंभ में ही वैवाहिक बंधन में बंध जाते थे। मैने कौतुहलवश जब किसी से पूछा तो मुझे बताया गया कि वे शादी नहीं कर रहें हैं वरन् वैवाहिक जीवन की सफलता पर उत्सव मना रहे हैं। मैेने जब उनसे वैवाहिक जीवन के सफल होने के आधार के बारे में पूछा तो मालूम हुआ कि उक्त दम्पत्ति के पुत्र-पुति्रयों की संख्या 21 हो गयी है। उन दिनों उस इलाके में वैवाहिक जीवन की सफलता का मापदण्ड यही था। बाद में जब कुछ बड़ा हुआ तो पाया कि मेरे कई हमउम्रो के कुल भाई-बहन 11-12 की संख्या में थे। किसी को हमलोग फुटबॉल टीम या फिर पूरा दर्जन कहते थे ,क्योंकि आधे दर्जन की तो भरमार थी और इस सिलसिले को बहुत हद तक हमलोगों ने भी ढोया।

किन्तु इस जनसंख्या-वृिद्ध के दुष्प्रभाव को सबने महसूस किया और 20वीं शताब्दी के चतुर्थ चरण के प्रारंभ में श्रीमती इंदिरा गॉधी द्वारा परिवार नियोजन की आवाज को बुलंद किया गया। जोर-जबर्दस्ती से इस कार्यक्रम को चलाने के आरोप में उनकी सरकार भले ही ध्वस्त हो गयी हो , परंतु सीमित परिवार की आवश्यकता को धीरे-धीरे सभी ने स्वीकार किया। आज भारत की आबादी एक अरब से अधिक है तथा विश्व की 7 अरब के लगभग , अधिकांश देश अपनी मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने में अक्षम दिखाई दे रहें हैं। विकासशील देशों की सबसे बडी समस्या उसकी बढ़ती हुई आबादी है। विकसित और अविकसित सभी देशों में `हम दो : हमारे दो´ का नारा बुलंद है। जो इससे भी अधिक प्रगतिशील विचारधारा के हैं , वे `हम दो : हमारे एक´ की बात को चरितार्थ कर रहें हैं।

उपरोक्त परिप्रेक्ष्य को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि ग्रहों के साथ संतान की संख्या को जोड़ने की कोिशश निरर्थक सिद्ध होगी। आज भी कई ग्रह संतान स्थान में स्थित हो सकते हैं और अपनी क्षमता के अनुसार सिद्धांतत: संतान प्रदान करने की बात को सही सिद्ध करना चाहे तो अतीत के लिए कुछ जोड़-तोड़ के साथ ये नियम सही भी हो सकते थे परंतु आज ग्रह-बल के अनुरुप संतान-प्राप्ति की संख्या की बात निष्फल हो जाएगी। अत: इस संदर्भ में यही कहना उचित होगा कि अधिक से अधिक ग्रह सतंान भाव में मौजूद हो तो उस व्यक्ति को संतान सुख की प्राप्ति होती रहेगी । उसकी संतान का बहु-आयामी विकास होगा और हर काल में संतान-सुख की प्राप्ति होती रहेगी। वास्तव में सुख के साथ संतानसंख्या का कोई संबंध नहीं है। ` एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति नच तारागणोपिच। ´ 
इसी प्रकार सप्तम भाव में स्थित ग्रहों को देखकर बहुत से पंडित एकभार्या , द्विभार्या या बहुभार्या योग की चर्चा करते हैं। इस पद्धति को भी गलत समझा जाना चाहिए। बहुत अधिक बलवान धनात्मक ग्रह की सप्तम भाव में उपस्थिति भोग-विलास ,सहवास की तीव्रता, तदनुरुप कार्यकलाप , कामकला में निपुणता , इससे संबंधित भावाभिव्यक्ति , नृत्यकला , अभिनय कला आदि का संकेतक होती है। कोई जरुरी नहीं है कि विलासिता की संतुिष्ट के लिए पित्नयों या भार्याओं की संख्या अधिक हो। 

भगवान श्रीकृष्ण की जन्मकुंडली में सप्तम भाव में एक भी ग्रह नहीं हैं या कुछ ग्रंथों में इनकी जन्मकुंडली में एकमात्र ग्रह स्वक्षेत्रीय मंगल सप्तम भाव में विराजमान है। फिर भी हजारों गोपियॉ उनकी प्रेमिका थी। राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन की जन्मकुंडलियों में सप्तम भाव में बहुत सारे ग्रह स्थित हैं । राजेश खन्ना को एक ही पत्नी मिली और ंउसके साथ भी सार्वकालीक निर्वाह नहीं हो सका। अमिताभ बच्चन एक पत्नी से ही सुखी दाम्पत्य जीवन जी रहें हैं , हालॉकि यह माना जा सकता है कि अभिनेता होने के नाते उन दोनों ने बहुत सुंदरियों के साथ भोग-विलास किया हो । उपरोक्त चर्चा से भी यह स्पष्ट होता है कि फलित ज्योतिष प्रवृत्तियों का विज्ञान है। किसी खास प्रवृत्ति की तीव्रता की चर्चा की जा सकती है , उसकी संख्या या मात्रा को निर्धारित नहीं किया जा सकता ।

फलित ज्योतिष से मनुष्य की इच्छा-शक्ति , बौिद्धक शक्ति , मंत्रणा-शक्ति , साहस , सूझ-बूझ , तेज , बड़प्पन , विश्वास , साख , दृढ़ता , पराक्र्रम , संघषZ-क्षमता , प्रभाव , मानवीय पक्ष , भाग्यवादी दृिष्टकोण , सामाजिक-राजनीतिक वातावरण , पद-प्रतिष्ठा प्राप्ति की संभावनाओं , धन-लाभ और आय-व्यय की प्रवृत्तियों की तीव्रता की चर्चा की जा सकती है , उसकी मात्रा का शािब्दक विवरण प्रस्तुत किया जा सकता है , किन्तु संख्या का उल्लेख कदापि नहीं किया जा सकता। ग्रहों के विद्युत-चुम्बकीय किरणों या कॉिस्मक तरंगों से हम प्रभावित हैं , उसकी तीव्रता की माप ग्रेड या श्रेणी में की जा सकती है । तत्संबंधित प्रवृत्तियों की तीव्रता की जानकारी अधिक से अधिक प्रतिशत में निकाली जा सकती है , किन्तु इनकी प्रतिशत तीव्रता को देखकर किसी भी संख्या का आकलण करना मूर्खता ही होगी । एक व्यक्ति में धन-संचय की प्रवृत्ति अपनी पराकाष्ठा पर हो तो इसका मतलब यह कदापि नहीं कि वह व्यक्ति विश्व का सबसे धनाढ्य आदमी है और हर काल में वह धनाढ्य ही बना रहेगा। पराकाष्ठा की तीव्रता से संबंधित योग भिन्न-भिन्न ग्रहों के साथ सैकड़ों बार बनेगा और भिन्न-भिन्न ग्रहों से उसके संपर्क को देखते हुए भिन्न-भिन्न काल में उसके स्वरुप में धनात्मक या ऋणात्मक परिवत्र्तन हो सकता है। संख्या की चर्चा फलित ज्योतिष में वैज्ञानिक प्रतीत नहीं होता।


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