सफलता में इतराओ नही, असफलता में घबराओ नही

सफलता में इतराओ नही, असफलता में घबराओ नही

(लेखक - श्री विद्या सागर महथा)

कल मैं 78 वर्ष पूरे करनेवाला हूँ। अपनी खोज गत्यात्मक दशा पद्धति के अनुसार जीवन के सातवें पड़ाव के मध्य में खड़ा हूँ। मैं पृथ्वी पर 15 जुलाई 1939 को अमावस के एक दिन पूर्व आया। कुम्भ लग्न , मिथुन राशि मे क्षीण चंद्रमा के कारण जीवन के प्रारंभ के 12 वर्ष रोग, ऋण, शत्रु या किसी प्रकार के भय से संबंधित मनोवैज्ञानिक संघर्ष के बीच अपना समय गुज़ारा। 12 वर्ष से 24 वर्ष की उम्र तक गणित, विज्ञान और तर्क-शक्ति में रुचि रखने वाला बना रहा। किसी भी कार्यक्रम में क्षीण चंद्रमा की वजह से मेरा मन सबसे पहले आनेवाले किसी प्रकार की पेचीदगी तक पहुंच जाता है या उसे देख लेता है। गणनात्मक और तर्क बुद्धि प्राप्त होने के कारण मेरा बुध समाधान प्राप्त करने की जगह तक पहुंचता है। मकर का मंगल 12वें भाव मे वक्र गति का है। 24 वर्ष की उम्र से 36 वर्ष की उम्र तक का काल मेरे लिए सबसे बुरा बना रहा। अपने परिवेश को शांतिपूर्ण बनाये रखने और सबकी सुख शांति के लिए त्याग उचित समझा, यहां परिस्थितियों के अनुसार निःस्वार्थ भाव से परंपरागत कार्यों को ढोता रहा। प्रतिष्ठा-प्राप्ति के प्रति सजग था, चितन-मनन का पर्याप्त अवसर मिला।


जीवन के चौथे पड़ाव मिथुन के गतिशील शुक्र का काल 36 वर्ष से 48 वर्ष के समय को जीवन का सर्वाधिक अच्छा समय कहूंगा, जिसने हर प्रकार से संपत्ति , सुख , शांति ,स्थायित्व को मजबूती प्रदान किया। इसी अवधि में मन मष्तिष्क में अनायास उपस्थित हुआ कि दशा काल की निर्भरता ग्रहों की गति में है, अन्यत्र कहीं नहीं । दूर दूर से लोग अपनी समस्याओं के समाधान के लिए आने लगे। सकारात्मक सूर्य, जो कि सातवें भाव का स्वामी है, के कारण 48 वर्ष से 60 वर्ष की उम्र तक घर गृहस्थी की जवाबदेही का सफलतापूर्वक निर्वाहन किया । 




किसी भी व्यक्ति का सर्वाधिक ध्यान-संकेन्द्रण मध्यम गति वाले स्थैतिक ऊर्जा के अनुसार होता है। उस क्षेत्र में व्यापकता के साथ गंभीरता वाली बात होती है। लेकिन व्यक्ति को संघर्ष करना पड़ता है। 60 वर्ष की उम्र में आर्थिक , पारिवारिक , कौटुम्बिक विस्तार के लिए दिल्ली आया। बृहस्पति सर्वाधिक स्थैतिक ऊर्जा का ग्रह है, इसने वैश्विक भावनाओं को मजबूत किया, अर्थव्यवस्था को सभी के लिए कैसे मजबूत किया जा सकता है, इसपर काम करने के लिए प्रेरित करता रहा। कभी वह दिखाई पड़ता है, कभी ओझल हो जाता है, लेकिन मन से हारा हुआ नही हूँ। हर क्षण चिंतन मनन और अनुसंधान का कार्य जारी है। 


लग्नेश शनि का काल होने के कारण विगत पांच छह वर्षों से यह सोंचता आ रहा हूँ, जीवन का लंबा सफर यूं ही गुजर गया, कुछ खास कर नही पाया। संतोष इस बात का जरूर है कि ग्रहों की गति पर आधारित हर व्यक्ति के जीवन के उतार-चढ़ाव के गत्यात्मक सिद्धांत और सूत्र को समझकर संसार को देने के लिए ऊपरवाले ने मेरा ही चयन किया, यही क्या कम है ? 





अंततः संक्षेप में यही कहूंगा कि अच्छे या बुरे को समझने या करने की प्रेरणा, ब्रह्मांडीय शक्ति और पार्थिव परिस्थितियों दोनों से मिलती रहती हैं और व्यक्ति उस बहाव में डूबता उतराता बहता चला जाता है। अतः सफलता में इतराओ नही और असफलता में घबराने की कोई आवश्यकता नही।





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