घड़ी की तरह ही समय की जानकारी मनुष्‍य के लिए बहुत उपयोगी है

Astrology in life

घड़ी की तरह ही समय की जानकारी मनुष्‍य के लिए बहुत उपयोगी है

(लेखक - श्री विद्या सागर महथा)


संसार के प्राय: सभी लोग आज घड़ी पहनने लगे हैं। इसे पहनने पर भी और नहीं पहनने पर भी हर स्थिति में समय तो अबाध गति से चलता ही रहेगा यानि जिस समय जितना बजना है , बजता ही रहेगा , हम समय में कोई परिवर्तन नहीं कर सकते , फिर घड़ी के पहनने से क्या लाभ ? इसे पहनने की क्या बाध्यता है ? क्या इसे आप शौक से पहनते हैं ? या सचमुच यह प्रयोजनीय है ? 


रात्रि में मेरी नींद एक बार टूटती है , उस समय टॉर्च जलाकर दीवाल घड़ी की ओर झॉकता हूं। तीन बजे के पहले का समय होता है , तो सडक वाली खिड़की को नहीं खोलता हूं। समय तीन बजे के बाद का हो , तो खिड़की को खोल देता हूं। घड़ी मुझे ऐसा कुछ करने का आदेश देती है , बात वैसी नहीं है। मैं घड़ी के माध्यम से बाहरी परिवेश को समझने की कोशिश करता हूं , तद्नुरुप मेरी कार्यवाही होती है। 12 बजे रात्रि से 3 बजे भोर तक निशाचर या असामाजिक तत्वों का भय होता है। इस समय शेष संसार गंभीर निद्रा में पड़ा होता है। ऐसी बात को समझकर अवचेतन मन सड़क की तरफ की खिड़की को खोलने की इजाजत नहीं देता। घड़ी मुझे केवल समय बता रही होती है , मै उसके साथ अपने को नियोजित करता हूं। रात बहुत बाकी हो , तो पुन: सो जाता हूं। अगर नींद तीन बजे के बाद खुली , तो छत पर टहलता हूं या लिखने-पढ़ने का कुछ काम कर लेता हूं। 
Astrology in life

जो व्यक्ति जितना व्यस्त होता है , उसे घड़ी की उतनी ही आवश्यकता होती है। स्टेशन या बस-स्टैण्ड पर ऐसे बहुत से आदमी मिलेंगे , जिन्हें आप बार-बार घड़ी देखते हुए पाएंगे। समझ लीजिए किसी आवश्यक काम से वे कहीं जा रहे हैं और निर्धारित निश्चित समय पर उन्हें किसी गंतब्य तक पहुंचना है। जब रेल या बस का आना निश्चित है , उस व्यक्ति का उससे यात्रा करना निश्चित है तो फिर बार-बार घड़ी देखने की व्याकुलता कैसी ? घड़ी तो रेल या बस की गति को कम या तेज नहीं कर सकती , गाड़ी में आयी गड़बड़ी या ब्रेक-डाउन को भी ठीक नहीं कर सकती। आशा और निराशा के बीच झूलनेवाले व्यक्ति को घड़ी समझा भी नहीं सकती। फिर वह व्यक्ति बार-बार घड़ी क्यो देखता है। समय के रफ्तार में समरुपता बनी हुई है। जितना बजना है , बजता जा रहा है। फिर घड़ी देखनेवाले , घड़ी देखकर अपने बोझिल मन को और हल्का करते हैं या हल्के मन को और बोझिल या फिर घड़ी के माध्यम से संसार को समझते हुए उससे अपने को सही जगह खपाने की कोशिश करते हैं। 

परीक्षा में सम्मिलित होनेवाले सभी परीक्षार्थियो की कलाई में घड़ी दिखाई पड़ती है। प्रश्नपत्र मिलने के समय और पूरी परीक्षा के दौरान परीक्षार्थी का जितना ध्यान प्रश्नपत्र को देखने का होता है , उससे कम घड़ी पर नहीं होता। उत्तरपुस्तिका में लिखने के समय भी वे बार-बार घड़ी पर ही निगाह रखते हैं। देखनेवाले को कभी-कभी ऐसा प्रतीत होगा , मानो घड़ी में ही उस प्रश्न का उत्तर लिखा हो । जब परीक्षा की अवधि समाप्त समाप्त होने में मामूली समय बचा होता है ,कुछ परीक्षार्थी के चेहरे पर संतोष की रेखाएं उभरती है , वे प्रसन्न नजर आते हैं , तो कुछ परीक्षार्थियों को इस समय बार-बार घड़ी देखते हुए रोने की मुद्रा में देखा जा सकता है। परीक्षार्थियों में हंसने या रोने का भाव क्या सचमुच घड़ी की ही देन है ? 

उपरोक्त उदाहरणों से स्पश्ट है कि घड़ी अपने-आपमें बिल्कुल तटस्थ है। वह किसी के हंसने या रोने का कारण कदापि नहीं बन सकती। किन्तु घड़ी को जिसने भी समझ लिया , वह अधिक से अधिक काम कर सकता है। उसकी कार्यक्षमता बढ़ जाती है। उसे इस बात की पूरी जानकारी हो जाती है कि किस मौके पर कौन सा काम किया जाना चाहिए। घड़ी के माध्यम से घर बैठे सारे संसार को समझ पाने में सहायता मिलती है। घड़ी तत्कालीन परिवेश की जानकारी देकर कम से कम समय में अधिक से अधिक काम करने की प्रवृत्ति का विकास करके आत्मविश्वास का संचार करती है। समय को समझकर उसके अनुसार काम करनेवाले तथा समय की मॉग के विरुद्ध काम करनेवाले के आत्मविश्वास में काफी अंतर होता है। 

बैंक के खाते में आपका धन जमा है , उसकी आपको जरुरत है , उसपर आपका अधिकार भी है , किन्तु आप 11 बजे से 5 बजे दिन में ही उसकी निकासी कर सकते हैं , 11 बजे रात्रि को बैंक से निकालने का प्रयत्न करेंगे , तो हथकड़ी भी लग सकती है। इसी प्रकार हर समय की अपनी विशेषता होती है। 

एक विद्यार्थी गणित में कमजोर है तथा प्रतिदिन 1 बजे से 2 बजे के बीच रुटीन के अनुसार उसकी गणित की पढ़ाई होती है। गणित की इस कक्षा में उपस्थित रहे या अनुपस्थित , दोनो ही स्थिति में वह विद्यार्थी स्वाभाविक रुप से खुद को अशांत पाएगा। यह घड़ी की देन कदापि नहीं है , वह तो उस व्यवस्था की देन है , जिसके अनुसार इस अरुचिकर विषय को ढोने का काम उसे मिला हुआ है।गणित की पढ़ाई का समय निर्धारित है , घड़ी उस समय की जानकारी देती है , किन्तु घड़ी अपने आपमें तटस्थ है , निरपेक्ष है। 

प्रतिक्षण हम घटनाओं के बीच से गुजरते और यह मामूली घड़ी समय की जानकारी देकर घटनाओं के बीच तालमेल स्थापित करने के लिए दिशानिर्देश करते हुए हमें संचालित और क्रियाशील करती है। लेकिन विचारनीय है कि यह घड़ी आयी कहॉ से ? भले ही घड़ी को पृथ्वी की दैनिक गति का पर्याय नहीं कहा जाए , पृथ्वी की दैनिक गति को समझने के लिए या उसका पूर्णत: प्रतिनिधित्व करने के लिए घड़ी के 24 घंटों का स्वीकार किया गया , ताकि सूर्योदय , सूर्यास्त दोपहर या आधीरात के नैसर्गिक शाश्वत परिवेश को आसानी से समझा जा सके। 

अब पृथ्वी की दैनिक गति और उसके पर्याय घड़ी के 24 घंटे को समझने के बाद उस ब्रह्मांड को समझने की चेष्‍टा करें , जो ,महीने ऋतु , वर्ष, युग, मन्वंतर , सृष्टि , प्रलय का लेखा-जोखा और संपूर्ण जगत की गतिविधि को विराट कम्प्यूटर की तरह अपने-आपमें संजोए हुए है। निस्संदेह इन वर्णित संदर्भों का लेखा-जोखा विभिन्न ग्रहों की गतिविधियों पर निर्भर है। उसकी सही जानकारी आत्मविश्वास में वृद्धि करेगी , उसकी एक झलक मात्र से किसी का कल्याण हो सकता है , दिव्य चक्षु खुल जाएगा , आत्मज्ञान बढ़ेगा और संसार में बेहतर ढंग से आप अपने को नियोजित कर पाएंगे। भविष्‍य को सही ढंग से समझ पाना , उसमें अपने आपको खपाते हुए सही रंग भरना सकारात्मक दृष्टिकोण है। समय की सही जानकारी साधन और साध्य दोनो ही है। पहली दृष्टि में देखा जाए , तो घड़ी मात्र एक साधन है , किन्तु गंभीरता से देखें , तो वह मौन रहकर भी कई समस्याओं का इलाज कर देती है। इसी तरह ग्रहों के माध्यम से भविष्‍य की जानकारी रखनेवाला मौन रहकर भी अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त कर लेता है , पर इसके लिए एक सच्‍चे ज्‍योतिषी से आपका परिचय आवश्‍यक है। 

अति सामान्य व्यक्ति के लिए घड़ी या फलित ज्योतिष शौक का विषय हो सकता है , किन्तु जीवन के किसी क्षेत्र में उंचाई पर रहनेवाले व्यक्ति के लिए घड़ी और भविष्‍य की सही जानकारी की जरुरत अधिक से अधिक है। यह बात अलग है कि सही मायने में भविष्‍यद्रष्‍टा की कमी अभी भी बनी हुई है। 'गत्यात्मक दशा पद्धति' संपूर्ण जीवन के तस्वीर को घड़ी की तरह स्पष्‍ट बताता है। ग्रह ऊर्जा लेखाचित्र से यह स्पष्‍ट हो जाता है कि कब कौन सा काम किया जाना चाहिए। एक घड़ी की तरह ही गत्‍यात्‍मक ज्योतिष की जानकारी भी समय की सही जानकारी प्राप्त करने का साधन मात्र नहीं , वरन् अप्रत्यक्षत: बहुत सारी सूचनाएं प्रदान करके , समुचित कार्य करने की दिशा में बड़ी प्रेरणा-स्रोत है। 

जो कहते हैं कि घड़ी मैंने यों ही पहन रखी है या ज्योतिषी के पास मैं यों ही चला गया था , निश्चित रुप से बहुत ही धूर्त्‍त या अपने को या दूसरों को ठगनेवाले होते हैं। यह सही है कि आज के व्यस्त और अनिश्चित संसार में हर व्यक्ति को एक अच्छी घड़ी या फलित ज्योतिष की जानकारी की आवश्यकता है। इससे उसकी कार्यक्षमता काफी हद तक बढ़ सकती है । जीवन के किसी क्षेत्र में बहुत ऊंचाई पर रहनेवाला हर व्यक्ति यह महसूस करता है कि महज संयोग के कारण ही वह इतनी ऊंचाई हासिल कर सका है , अन्यथा उससे भी अधिक परिश्रमी और बुद्धिमान व्यक्ति संसार में भरे पड़े हैं , जिनकी पहचान भी नहीं बन सकी है। उस बड़ी चमत्कारी शक्ति की जानकारी के लिए फुरसत के क्षणों में उनका प्रयास जारी रहता है। यही कारण है कि बडे बडे विद्वान भी जीवन के अंतिम क्षणों में सर्वशक्तिमान को समझने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोगों को फलित ज्योतिष की जानकारी से कई समस्याओं को सुलझा पाने में मदद मिल सकती है , किन्तु इसके लिए अपने विराट उत्तरदायितव को समझते हुए समय निकालने की जरुरत है। अपनी कीमती जीवन-शैली में से कुछ समय निकालकर इस विद्या का ज्ञान प्राप्त करेंगे , तो इसके लिए भी एक घड़ी की आवश्यकता अनिवार्य होगी।



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21 टिप्पणियाँ

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SACCHAI
admin
17 नवंबर 2009 को 11:05 am बजे ×

बडे बडे विद्वान भी जीवन के अंतिम क्षणों में सर्वशक्तिमान को समझने की कोशिश करते हैं।

" is aalekh ko padhker bahut hi accha laga "

" badhai ho aapko "

----- eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai,blogspot.com

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19 नवंबर 2009 को 7:43 pm बजे ×

sahi hai ghadi ke bina to ek ghadi bhi nahi raha jataa!!

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Rajeysha
admin
26 नवंबर 2009 को 4:53 am बजे ×

घड़ी के दायरे से बाहर नि‍कलना ही तो जीवन का उद़देश्‍य है, नहीं?

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31 दिसंबर 2009 को 11:05 pm बजे ×

खुबसूरत रचना आभार
नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं ................

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1 जनवरी 2010 को 9:53 am बजे ×

Sundar bat.

नया साल...नया जोश...नई सोच...नई उमंग...नए सपने...आइये इसी सदभावना से नए साल का स्वागत करें !!! नव वर्ष-2010 की ढेरों मुबारकवाद !!!

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alka mishra
admin
3 जनवरी 2010 को 4:54 am बजे ×

नए साल में हिन्दी ब्लागिंग का परचम बुलंद हो
स्वस्थ २०१० हो
मंगलमय २०१० हो

पर मैं अपना एक एतराज दर्ज कराना चाहती हूँ
सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर के लिए जो वोटिंग हो रही है ,मैं आपसे पूछना चाहती हूँ की भारतीय लोकतंत्र की तरह ब्लाग्तंत्र की यह पहली प्रक्रिया ही इतनी भ्रष्ट क्यों है ,महिलाओं को ५०%तो छोडिये १०%भी आरक्षण नहीं

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3 जनवरी 2010 को 6:51 am बजे ×

Nav Varsh 2010 aapke aur aapke pariwar ke liye sukh, shanti, smridhi aur safalta lekar aaye. Ishwar aapki har manokamna purn kare aapka jiwan sukhmay ho. navvarsh mangalmay ho.

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gaurahav
admin
8 जनवरी 2010 को 5:06 am बजे ×

Apka lekh jeevan ko samajhne ka naya aur rochak drishtikon hai. Aapko 'Nav-varsh ki Shubhkaanayen'.

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9 जनवरी 2010 को 11:09 am बजे ×

Sundar gyan..laya liya hamne bhi dhyan !!

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Abhasjoshi
admin
19 जनवरी 2010 को 8:15 am बजे ×

Abhivadan
maine blog likhana shuru kiya hai
apaka aasheervad chahiye

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27 जनवरी 2010 को 7:45 am बजे ×

pahle to mere blog par aakar hausla badhane keliye dhanyabad. aage bhi aape apeksha lakta hoo. aaj bas itna hi kahoonga ki aapne ghari ka khoob hisab lagaya hai.. halaki gari ko samajhna mein hi hamari zindagi ka bada hissa gujar jata hai....

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27 जनवरी 2010 को 7:48 am बजे ×

pahle to mere blog par aakar hausla badhane keliye dhanyabad. aage bhi aape apeksha lakta hoo. aaj bas itna hi kahoonga ki aapne ghari ka khoob hisab lagaya hai.. halaki gari ko samajhna mein hi hamari zindagi ka bada hissa gujar jata hai....

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28 जनवरी 2010 को 3:39 am बजे ×

aapne to gari ko hi ghari dikha diya...sangita ji aapne jo mere blog par aakar mera hausla badhaya hai uske liye dil se shukriya.. aage bhi aapse ummid karta hoo... shukriya

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1 मार्च 2010 को 2:02 am बजे ×

संसार के प्राय: सभी लोग आज घड़ी पहनने लगे हैं।
घड़ी के अनुसार कर्म हो तो अछा
घड़ी अनुसार फलित ,फलित होता
है ,ज्योतिष है नेत्र वेद का ,
वेद जो कहे वही होता है .
फलित होता उसी का सचा
जो वेद के नेत्र से देखा करता है .

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बेनामी
admin
6 मार्च 2010 को 11:18 pm बजे ×

research your bopdy clock
it will help to understand the truth of almighty.......

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