शकुन पद्धति की वैज्ञानिकता

ram shalaka chaupai

शकुन पद्धति की वैज्ञानिकता

(लेखक - श्री विद्या सागर महथा)

मेरे गॉव में एक बुढ़िया रहती थी। उसके यहॉ शकुन कराने के लिए अक्सर ही लोग आया करते थे। उसके यहॉ लोगों के आवागमन को देखकर मै कौतूहलवश वहॉ पहुंचा , यह जानने की जिज्ञासा के साथ कि यह बुढ़िया आखिर करती क्या है , जिससे इसे सब बातें मालूम हो जाती हैं। उन दिनों मेरी उम्र मात्र 10-12 वर्ष ही रही होगी। यदि कोई विद्यार्थी उसके पास पहुंचता और पूछ बैठता कि वह परीक्षा में पास होगा या नहीं , तो बुढ़िया उसे दूसरे दिन की सुबह बुलाती , उसके आने पर ऑखें बंद कर होठों से कुछ बुदबुदाती , मानो कोई मंत्र पढ़ रही हो। इसके बाद बहुत शीघ्रता से जमीन में कुछ रेखाएं खींचती थी । फिर राम , सीता , लक्ष्मण राम , सीता , लक्ष्मण , के क्रम को दुहराती चली जाती। यदि अंत की रेखा में राम आता तो कहती , अच्छी तरह पास हो जाओगे। यदि अंत में सीता आती , तो पास नहीं हो पाओगे , एक बड़ी अड़चन है। यदि लक्ष्मण आ जातें , तो कहती पास हो जाओगे , किसी तरह पास हो जाओगे।

इसी तरह किसी का कोई जानवर खो गया है , तो वह बुढ़िया से पूछता कि उसका जानवर मिलेगा या नहीं , तो वह जमीन में फटाफट कई रेखाएं खींच देती , फिर उन लकीरों को उसी तरह राम , सीता और लक्ष्मण के नाम से गिनना शुरु कर देती , अंतिम रेखा में रामजी का नाम आया , तो जानवर मिल जाएगा , सीताजी आयी , तो जानवर नहीं मिलेगा , लक्ष्मणजी आए , तो कठिन परिश्रम से जानवर मिल जाएगा। जानवर किस दिशा में मिलेगा , इस प्रश्न के उत्तर में वह फटाफट जमीन पर कई रेखाएं खींचती , पहली रेखा को पूरब , दूसरी रेखा को पिश्चम , तीसरी रेखा को उत्तर और चौथी रेखा को दक्षिण के रुप में गिनती जारी रखती। यदि अंतिम रेखा में पूरब आया , तो जानवर के पूरब दिशा में , पश्चिम आया , तो जानवर के पश्चिम दिशा में , उत्तर आया , तो उसके उत्तर दिशा में तथा दक्षिण आया , तो जानवर के दक्षिण दिशा में होने की भविष्‍यवाणी कर दी जाती। बुढ़िया की इस कार्यवाही में सच कितना होता होगा , यह तो नहीं कहा जा सकता , किन्तु इसे विज्ञान कहना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं होगा।

बुढ़िया की शकुन करने की पद्धति अत्यंत सरल है। इससे कौन आदमी कितना लाभान्वित हो सकता है , यह सोंचने की बात है। राम , लक्ष्मण और सीता की गिनती से रेखाओं को गिनना और किसी निष्‍कर्ष पर पहुंचना महज तीन संभावनाओं में से एक का उल्लेख करता है। तीनों संभावनाओं का विज्ञान से कोई वास्ता नहीं , फिर भी गॉव के सरल लोग किसी दुविधा में पड़ते ही व्याकुल होकर उसके पास पहुंचने का क्रम बनाए रहते थे। जो धर्त्‍त या चालाक तरह के लोग होते , वे भी बुढ़िया के पास मनोरंजनार्थ पहुंचते। बुढ़िया अपनी लोकप्रियता से खुश होती थी , कुछ लोग शकुन के बढ़िया होने पर खुश होकर कुछ दे भी देते , पर काफी लोगों के लिए वह उपहास का विषय बनी हुई थी , इस तरह बुढ़िया की शकुन करने की पद्धति विवादास्पद और हास्यास्पद थी।
बुढ़िया की उपरोक्त शकुन पद्धति की चर्चा इसलिए कर रहा हूं कि आज फलित ज्योतिष में शकुन पद्धति को व्यापक पैमाने पर स्थान मिला हुआ है। शकुनी ने तो पांडवों पर विजय प्राप्त करने और अपने भांजे दुर्योधन को विजयी बनाने के लिए किस पाशे का व्यवहार किया था या किस विधि से पाशे फेकता या फेकवाता था , यह अनुसंधान का विषय हो सकता है , जहॉ केवल जीत की ही संभावनाएं थी , लेकिन इतना तो तय है कि जिस पाशे से हार और जीत दोनो का ही निर्णय हो , उसमें संभावनाएं केवल दो होंगी। घनाकार एक पाशा हो , जिसके हर फलक में अलग अंक लिखा हो , जिसके हर अंक का फल अलग-अलग हो , उसकी संभावनाएं 1/6 होंगी। चूंकि प्रत्येक अंक के लिए एक-एक फल लिखा गया है , तो एक पाशे से बारी-बारी से 6 प्रकार के फलों को सुनाया जा सकता है। ऐसे प्रयोगों का परिणाम कदापि सही नहीं कहा जा सकता। मनोरंजनार्थ या लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए शकुन किया जाए , तो बात दूसरी है।
हर रेलवे स्टेशन में तौलमापक मशीनें रहती हैं। उसमें निर्धारित शुल्क डाल देने पर तथा उस मशीन में खड़े होने पर व्यक्ति के वजन के साथ ही साथ उसके भाग्य को बताने वाला एक कार्ड मुफ्त में मिल जाता है। अधिकांश लोग उसे अपना सही भाग्यफल समझकर बहुत रुचि के साथ पढ़ते हैं । इस विधि से प्राप्त भाग्यफल को भी एक प्रकार से लॉटरी से उठा हुआ भाग्यफल समझना चाहिए। जो विज्ञान पर आधृत नहीं होने के कारण कदापि विश्वसनीय नहीं कहा जा सकता। इसलिए इस भाग्यफल को विज्ञान मान्यता नहीं दे सकता।
बड़े-बड़े शहरों में ललाट पर तिलक लगाए ज्योतिशी के रुप में तोते के माध्यम से दूसरों का भाग्यफल निकालते हुए तथाकथित ज्योतिषियों की संख्या भी बढ़ती देखी जा रही है। 25-30 पर्चियों में विभिन्न प्रकार के भाग्यों का उल्लेख होता है। भाग्यफल की जानकारी प्राप्त करने वाला व्यक्ति तोतेवाले को निर्धारित शुल्क दक्षिणा के रुप में देता है , जिसे प्राप्त करते ही तोतेवाला पंडित तोते को निकाल देता है । तोता उन पर्चियों में से एक पर्ची निकालकर अपने मालिक के हाथ में रख देता है , उस पर्ची में जो लिखा होता है , वही उस जिज्ञासु व्यक्ति का भाग्य होता है। तत्क्षण ही एक बार और दक्षिणा देकर भाग्यफल निकालने को कहा जाए , तो प्राय: भाग्यफल बदल जाएगा। इस पद्धति को भी भाग्यफल की लॉटरी कहना उचित होगा। ग्रहों से संबंधित फल कथन से इस भाग्यफल का कोई रिश्ता नहीं।
इसी तरह धार्मिक प्रवृत्ति के कुछ लोगों को रामायण के प्रारंभिक भाग में उल्लिखित श्री रामश्लाका प्रश्नावलि से भाग्यफल प्राप्त करते देखा गया हैं। रामश्लाका प्रश्नावलि में नौ चौपाइयों के अंतर्गत स्थान पानेवाले 25 गुना नौ यानि 225 अक्षरों को पंद्रह गुना पंद्रह , बराबर 225 ऊध्र्व एवं पार्श्‍व कोष्‍ठकों के बीच क्रम से इस प्रकार सजाया गया है कि जिस कोष्‍ठक पर भगवान का नाम लेकर ऊंगली रखी जाए , वहॉ से नौवें कोष्‍ठक पर जो अक्षर मिलते चले जाएं , और इस प्रक्रिया की निरंतरता को जारी रखा जाए , तो अंतत: एक चौपाई बन जाती है , हर चौपायी के लिए एक विशेष अर्थ रखा गया है । भक्त उस अर्थ को अपना भाग्य समझ बैठता है। जैसे- सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजहिं मनकामना तुम्हारी। इसका फल होगा - प्रश्नकर्ता का प्रश्न उत्तम है। कार्य सिद्ध होगा । इसी तरह एक चौपाई - उधरे अंत न होई निबाहू। कालनेमि जिमि रावण राहू। का फल इस प्रकार होगा- इस कार्य में भलाई नहीं हैं। कार्य की सफलता में संदेह है। इस प्रकार की नौ चौपाइयों से धनात्मक या ऋणात्मक फल भक्त प्राप्त करते हैं। यहॉ भी फल प्राप्त करने की विधि लॉटरी पद्धति ही मानी जा सकती है। धार्मिक विश्वास और आस्था की दृष्टि से रामायण से शकुन कर मन को शांति प्रदान करने की यह विधि भक्तों के लिए सर्वोत्‍तम हो सकती है , परंतु इस प्रकार के एक उत्तर प्राप्त करने की संभावना 1/9 होगी और यह कदापि नहीं कहा जा सकता है कि इसे किसी प्रकार का वैज्ञानिक आधार प्राप्त है। शकुन शकुन ही होता है। कभी शकुन की बातें सही , तो अधिकांश समय गलत भी हो सकती हैं।
ram shalaka chaupai

घर या अस्पताल में अपना कोई मरीज मरणासन्न स्थिति में हो और उसी समय बिल्ली या कुत्ते के रोने की आवाज आ रही हो , तो ऐसी स्थिति में अक्सर मरीज के निकटतम संबंधियों का आत्मविश्वास कम होने लगता है , किन्तु ऐसा होना गलत है। कुत्ते या बिल्ली के रोने का यह अर्थ नहीं कि उस मरीज की मौत ही हो जाएगी। कुत्ते या बिल्ली का रोने की बेसुरी आवाज वातावरण को बोझिल और मन:स्थिति को कष्‍टकर बनाती है , किन्तु यह आवाज हर समय कोई भविष्‍यवाणी ही करती है या किसी बुरी घटना के घटने का संकेत देती है , ऐसा नहीं कहा जा सकता।
इस तरह कभी यात्रा की जा रही हो और रास्ते के आगे बिल्ली इस पार से उस पार हो जाए , तो शत-प्रतिशत वाहन-चालक वाहन को एक क्षण के लिए रोक देना ही उचित समझते हैं। ऐसा वे यह सोंचकर करते हैं कि यदि गाड़ी नहीं रोकी गयी , तो आगे चलकर कहीं भी दुर्घटना घट सकती है। ऐसी बातें कभी भी विज्ञानसम्मत नहीं मानी जा सकती , क्योकि जिस बात को लोग बराबर देखते सुनते और व्यवहार में लाते हैं , उसे वे फलित ज्योतिष का अंग मान लेते हैं , उन्हें ऐसा लगता है , मानो बिल्ली ने रास्ता काटकर यह भविष्‍यवाणी कर दी कि थोड़ी देर के लिए रुक जाओ , अन्यथा गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो जाएगी। कैसी विडम्बना है , रेलवे फाटक पर पहरा दे रहा चौकीदार जब आते हुए रेल को देखकर गाड़ीवाले को रुकने का संकेत करता है , तो बहुत से लोग एक्सीडेंट की परवाह न करते हुए रेलवे कॉसिंग को पार करने को उद्यत हो जाते हैं और बिल्ली के रास्ता काटने पर उससे डरकर लोग गाड़ी रोक देते हैं।
मैं पहले ही इस बात की चर्चा कर चुका हूं कि प्रमुख सात ग्रहों या आकाशीय पिंडों के नाम के आधार पर सप्ताह के सात दिनों के नामकरण भले ही कर दिया गया हो , लेकिन इन दिनों पर संबंधित ग्रहों का कोई प्रभाव नहीं होता है। लेकिन शकुन के लिए लोगों ने इन दिनों को आधार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यथा ` रवि मुख दर्पण , सोमे पान , मंगल धनिया , बुध मिष्‍टान्न। बिफे दही , शुके राय , शनि कहे नहाय , धोय खाय।´ इसका अर्थ हुआ कि रविवार को दर्पण में चेहरा देखने पऱ , सोमवार को पान खाने पर , मंगलवार को धनिया चबाने पर , बुध को मिठाई का सेवन करने पर , बृहस्पतिवार को दही खाने पर , शुक्रवार को सरसों या राई खाने पर तथा शनिवार को स्नान कर खाने के बाद कोई काम करने पर शकुन बनता है , कार्य की सिद्धि होती है। इन सब बातों का कोई वैज्ञानिक पक्ष नहीं है , जिससे फलित ज्योतिष का कोई लेना-देना रहे। जब सप्ताह के दिनों से ग्रहों के प्रभाव का ही कोई धनात्मक या ऋणत्मक सह-संबंध नहीं है , तो इलाज , शकुन या भविश्यफल कथन कहॉ तक सही हो सकता है , यह सोंचनेवाली बात है।
शकुन पद्धति से या लॉटरी की पद्धति से कई संभावनाओं में से एक को स्वीकार करने की प्रथा है। किन्तु हम अच्छी तरह से जानते हैं कि बार-बार ऐसे प्रयोगों का परिणाम विज्ञान की तरह एक जैसा नहीं होता। अत: इस प्रकार के शकुन भले ही कुछ क्षणों के लिए आहत मन को राहत दे दे , भविश्य या वर्तमान जानने की पक्की विधि कदापि नहीं हो सकती। स्मरण रहे , विज्ञान से सत्य का उद्घाटन किया जा सकता है तथा अनुमान से कई प्रकार की संभावनाओं की व्याख्या करके अनिश्चय और निश्चय के बीच पेंडुलम की तरह थिरकता रहना पड़ सकता है , लेकिन इन दोनों से अलग लॉटरी या शकुन पद्धति से अनुमान और सत्य दोनों की अवहेलना करते हुए अंधेरे में टटोलते हुए जो भी हाथ लग जाए , उसे अपनी नियति मान बैठने का दर्द झेलने को विवश होना पड़ता है।





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28 टिप्पणियाँ

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29 अगस्त 2009 को 9:48 pm बजे ×

पाठकों से निवेदन है .. यह रचना विद्यासागर महथा जी की यानि मेरे पिताजी की है .. उन्‍होने मुझे इस लेख को प्रकाशित करने को कहा .. मैने गल्‍ती से अपने प्रोफाइल से पोस्‍ट कर दिया !!

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29 अगस्त 2009 को 10:44 pm बजे ×

सण्गीता जी ऐसे आलेख की आप से बहुत देर से आपेक्षा थी अक्सर ही लोग ऐसी पद्धतियों को ज्योतिश से ज्प्ड कर देखते हैं जबकि ये ज्योतिश का अंग नहीं हैं । बहुत ग्यानवर्द्धक आलेख है आपके पिता जी को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें आपका आभार्

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29 अगस्त 2009 को 10:46 pm बजे ×

I keep getting regular mails from SmritiDeergha; while browsing that I found link to your blog.

Must say it's very interesting.

One suggestion... pls try to use a smaller font so that all the content remains in the width of computer screen and right side scrolling can be avoided.

will keep visiting ur blog!

:-)

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Meenu Khare
admin
30 अगस्त 2009 को 1:01 am बजे ×

बहुत अच्छा आलेख संगीता जी. पिताजी को प्रणाम कहिएगा.

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2 सितंबर 2009 को 9:01 am बजे ×

इस पढ़कर बहुत अच्छा लगा...एक जानकारी भरपूर लेख है...

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3 सितंबर 2009 को 8:13 am बजे ×

बात बात पर जो शकुन निकालबाते है उनके लिए आँखे खोलने वाला चिट्ठा है. धन्यवाद इतनी अच्छी जानकारी के लिए

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4 सितंबर 2009 को 5:46 am बजे ×

बहुत ही सार्थक लेख है शुक्रिया इसको पढ़वाने का .कभी वास्तु पर भी लिखा हुआ पढ़वायें

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vikram7
admin
8 सितंबर 2009 को 11:39 pm बजे ×

सही जानकारियों से युक्त अच्छा आलेख

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Naveen Tyagi
admin
12 सितंबर 2009 को 7:18 am बजे ×

समाचार पत्र -----राष्ट्र समिधा
राष्ट्र समिधा नाम से मेने एक समाचार पत्र (पाक्षिक) की शुरुआत की है। नवम्बर माह के पहले सप्ताह में इसका पहला अंक निकलेगा। आप सभी से प्रार्थना है की आप हमारे समाचार पत्र को अपने लेख व सुझाव भेजे। साथ में अपना पता,दूरभाष व ईमेल लिखें।
मेरी ईमेल आइ० डी0 naveenatrey@gmail.in है। आप इस पते पर अपने लेख भेज सकते है।

अग्रिम धन्यवाद सहित -------नवीन त्यागी

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Naveen Tyagi
admin
12 सितंबर 2009 को 7:19 am बजे ×

समाचार पत्र -----राष्ट्र समिधा
राष्ट्र समिधा नाम से मेने एक समाचार पत्र (पाक्षिक) की शुरुआत की है। नवम्बर माह के पहले सप्ताह में इसका पहला अंक निकलेगा। आप सभी से प्रार्थना है की आप हमारे समाचार पत्र को अपने लेख व सुझाव भेजे। साथ में अपना पता,दूरभाष व ईमेल लिखें।
मेरी ईमेल आइ० डी0 naveenatrey@gmail.in है। आप इस पते पर अपने लेख भेज सकते है।

अग्रिम धन्यवाद सहित -------नवीन त्यागी

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15 सितंबर 2009 को 2:07 am बजे ×

मेरी समझ से ये सब मन बहलाने और खाने कमाने के तरीके हैं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

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बेनामी
admin
17 सितंबर 2009 को 12:13 pm बजे ×

साधयति संस्कार भारती भारते नव जीवनम्

कलाओं के माध्यम से भारत को नव जीवन प्रदान करना यही संस्कार भारती का लक्ष्य है

कुछ प्रश्न हमे मथते हैं


कहाँ जा रही है हमारी नई पीढी ?
कैसे बचेगी हमारी संस्कृति ?
कैसा होगा कल का भारत ?
'ऐसे में अकेला व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता ,पर संगठित होकर हम सारी चुनोतियों का मुकाबला कर सकतें हैं । इसी प्रकार का एक संगठन सूत्र है 'संस्कार भारती 'जिससे जुड़कर आप अपने स्वप्नों और आदर्शों के अनुरूप भारत का नव निर्माण कर सकतें हैं ।
' जुड़ने के लिए अपना ई -पता टिप्पणी के साथ लिखें


परिचय एवं उद्देश्य
संस्कार भारती की स्थापना जनवरी १९८१ में लखनऊ में हुई थी । ललित कला के छेत्र में आज भारत के सबसे बड़े संगठन के रूप में लगभग १५०० इकाइयों के साथ कार्यरत है । शीर्षस्थ कला साधक व् कला प्रेमी नागरिक तथा उदीयमान कला साधक बड़ी संख्या में हम से जुड़े हुए हैं ।


संस्कार भारती कोई मनोरंजन मंच नही है ।
हम कोई प्रसिक्छनमंच नही चलाते, न कला कला के लिए मानकर उछ्र्न्खल और दुरूह प्रयोग करते रहते हैं ।


हमारी मान्यता है कि कला का प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है ।
कला राष्ट्र की सेवा ,आराधना ,पूजा का शशक्त माध्यम है ।
कला वस्तुतः एक साधना है ,समर्पण है ,
इसी भावना सूत्र में हम कला संस्कृति कर्मियों को बाँधते हैं ।


संस्कार भारती भारत को आनंदमय बनाना चाहती है ।
उसे नव जीवन प्रदान करना चाहती है ।
हर घर हर परिवार में कला को प्रतिष्ठित करना चाहती है ।
नई पीढी को सुसंस्कृत करना चाहती है ।

संस्कार भारती प्राचीन कलाओं को संरक्च्हन ,
आधुनिक कलाओं का संवर्धन एवं

लोक कलाओं का पुनुरुथान चाहती है
और सभी आधुनिक प्रयोगों को प्रोत्साहन भी देती है ।


संस्कार भारती सभी प्रकार के प्रदूषणों का प्रबल विरोध व् उपेक्छा करती है ।
सभी कार्यक्रमों का उद्देश्य ,

सामूहिकता के विकास के माध्यम से स्वमेव ,
समस्याओं के हल हो जाने का वातावरण बनाना है।


व्यक्ति विशेष पर आश्रित होना या आदेशों का अनुपालन करना हमारा अभीष्ट नहीं है ।

हम करें राष्ट्र आराधन ....

Posted by mahamayasanskarbharti

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23 सितंबर 2009 को 6:56 am बजे ×

सार्थक पोष्ट के लिए आभार

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9 अक्तूबर 2009 को 5:51 am बजे ×

आपके द्वारा दी गयी जानकारी काफी रोचक पूर्ण लगी आशा है की आगे भी ऐसी जानकारी मिलती रहेगी

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9 अक्तूबर 2009 को 5:55 am बजे ×

आपके द्वारा दी गयी जानकारी काफी रोचक पूर्ण लगी आशा है की आगे भी ऐसी जानकारी मिलती रहेगी

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pratimadu
admin
9 अक्तूबर 2009 को 5:58 am बजे ×

आपके द्वारा दी गयी जानकारी काफी रोचक पूर्ण लगी आशा है की आगे भी ऐसी जानकारी मिलती रहेगी

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pratimadu
admin
9 अक्तूबर 2009 को 6:00 am बजे ×

आपके द्वारा दी गयी जानकारी काफी रोचक पूर्ण लगी आशा है की आगे भी ऐसी जानकारी मिलती रहेगी

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बेनामी
admin
9 अक्तूबर 2009 को 6:01 am बजे ×

आपके द्वारा दी गयी जानकारी काफी रोचक पूर्ण लगी आशा है की आगे भी ऐसी जानकारी मिलती रहेगी

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बेनामी
admin
9 अक्तूबर 2009 को 9:51 am बजे ×

bahut badhiya

ज्योतिष ke baare me kuch jankariya de

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14 अक्तूबर 2009 को 2:27 am बजे ×

Namaskar Sangita Ji.
i belive in Asrology and it's intresting to read. Thanks for the valuable Post .

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16 अक्तूबर 2009 को 8:56 am बजे ×

बहुत बढिया आलेख,
धन्यवाद इतनी अच्छी जानकारी के लिए


सुख, समृद्धि और शान्ति का आगमन हो
जीवन प्रकाश से आलोकित हो !

★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए
★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★


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प्रत्येक शुक्रवार सुबह 9.00 बजे पढिये
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क्रियेटिव मंच

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17 अक्तूबर 2009 को 11:59 am बजे ×

दीप की स्वर्णिम आभा
आपके भाग्य की और कर्म
की द्विआभा.....
युग की सफ़लता की
त्रिवेणी
आपके जीवन से आरम्भ हो
मंगल कामना के साथ

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Rajeysha
admin
20 अक्तूबर 2009 को 3:01 am बजे ×

मि‍त्र, ज्ञान के आलोक में हर क्षण शुभ शगुन है।

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20 अक्तूबर 2009 को 3:05 am बजे ×

kafee gyanparak or logical bhee . isse andhvishwas se grast apne samaj ka bhala hoga...
apke pita jee sri mahta jee ko bahut badhaee...

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पंकज
admin
20 अक्तूबर 2009 को 10:54 am बजे ×

ज्ञानवर्धक आलेख. ज्योतिष आज व्यापार हो गया है. तरह तरह की सजी धजी देवियाँ से लेकर तिलकधारी महानुभाव हमारा भविष्य तरह तरह से बताते हैं. और इन सबका सबसे ज्यादा नुकसान ज्योतिष विद्या का हो रहा है.

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25 अक्तूबर 2009 को 6:12 am बजे ×

Sangeeta ji
aapke pitaji ki likha hua lekh padha bahut achcha laga sakun apsakun ki baat ko aapne jis tarah samjhaya hai

bahut achcha lekh

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anil sharma
admin
30 अक्तूबर 2009 को 10:51 am बजे ×

लेख सार्थक है , इससे बढ़िया शगुन हो भी नहीं सकता , मेरे को पढ़कर मजा आया

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